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भारतीय मास के क्रम से पर्व तथा त्यौहार

हिंदू पर्व तथा व्रत में अंतर होता है पर्व या त्यौहार जहां हर्ष उल्लास और वैभव के साथ मनाया जाता है वही व्रत में संगम पूर्वक उपवास रखते हुए संकल्प पूर्वक कार्य पूर्ण किए जाते हैं व्रत नैमित्तिक कार्य होते हैं इसे सुनिश्चित अवधि के लिए पालन किया जाता है तत्पश्चात इस व्रत का समापन किया जाता है व्रत नितांत व्यक्तिगत होता है जबकि करवा चौथ की एक ऐसा व्रत है जो सामूहिक रुप से मनाया जाता है व्रत किसी विशिष्ट इच्छा पूर्ति के लिए किए जाते हैं व्रत में गंभीरता का भाव अत्यधिक होता है यह जीवन को अनुशासित रखने का माध्यम है व्रत त्यौहार में विभिन्न प्रकार की कहानियां लोकगीत और कलाएं जुड़कर इसे वैभवशाली बनाती रही इनका मुख्य आधार पुराण है जब इन व्रतों में प्रतीकों को समाविष्ट किया जाता है तब यह और भी उल्लास में हो उठता है व्रत में व्रती को देवी गीतों चित्रकारी तथा अन्य क्रिया विधियों के द्वारा व्यस्त रखने की परंपरा जुड़ती चली गई

चैत्र मास होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा संपदा देवी पूजा बुढ़वा मंगल भैया दूज दितीया झूलेलाल जयंती गणेश चतुर्थी शीतला सप्तमी शीतला अष्टमी पापमोचनी एकादशी धनत्रयोदशी वारुणी पर्व अरुंधती व्रत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वासंतिक नवरात्र आरंभ गौरी उत्सव तृतीया गंगा और यमुना षष्ठी स्कंध षष्ठी उधना सप्तमी अशोक अष्टमी राम नवमी कामदा एकादशी में संक्रांति का महोत्सव त्रयोदशी से चतुर्दशी तक महावीर जयंती हनुमत जयंती चैत्र पूर्णिमा वैशाख मास वैशाख स्नान प्रारंभ वैशाख कृष्ण प्रतिपदा कच्छप अवतार
यह पूर्णिमा पहले ही दिन आधी रात तक हो तो पहले ही दिन व्रत करें यदि दूसरे दिन पूर्णिमा आधी रात्रि तक हो तो दूसरे दिन व्रत करें कोजगरा में लक्ष्मी तथा इंद्र का पूजन किया जाता है रात्रि में जागरण करना और जुआ खेलने का विधान है उसमें कमल के आसन पर बैठी लक्ष्मी का ध्यान कर हाथ में अक्षत लेकर अक्षत के ढेर पर लग शिवाय नमः इस मंत्र से लक्ष्मी का आवाहन कर षोडशोपचार पूजा करते हैं पूजा के अनंतर पुष्पांजलि देकर नमस्कार करें 4 दांत वाले हाथी पर हाथ में वज्र लिए सच्ची के प्रति अनेक आभूषणों से अलंकृत इंद्र को ध्यान करना चाहिए नारियल का रस पी कर जल्दी कर जुआ खेलना प्रारंभ करें आधी रात में वरदान देने वाली लक्ष्मी यह देखती है कि कौन जगह हुआ है ऐसा देखकर जो जुआ खेलता है उसे धन देती है नारियल और चुरा देवताओं तथा पितरो को समर्पण कर स्वयं इसका भक्षण करें

संवत्सर आरंभ चैत्र महिने शुक्ल प्रतिपदा को विक्रम संवत का आरंभ होता है अथर्व वेद के पृथ्वी सूक्त के अनुसार पृथ्वी के साथ संवत्सरों का संबंध रहा है ऋतु विज्ञान की कथा संवत्सर महत्वपूर्ण कारक है प्रजापति ब्रह्मा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को सृष्टि की रचना की थी उसी दिन से संवत्सर का आरंभ हुआ ब्रम्हा पुराण के अनुसार देवी-देवताओं ने किसी दिन से सृष्टि के संचालन का सृष्टि कार्यभार संभाला संवत्सर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का साक्षात प्रतिमूर्ति है अतः आज के दिन संवत्सर की स्वर्ण पथ प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान अथर्ववेद में प्राप्त होता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है ईरान के लोग आज के ही दिन नवरोज त्योहार मनाते हैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्र का आरंभ होता है जिस दिन नवरात्र व्रत का अनुष्ठान समूचे भारत वर्ष में मनाया जाता है वैष्णव लोग रामायण का पाठ तो शास्त्र संप्रदाय के लोग मां दुर्गा की उपासना करते हैं वैदिक परंपरा से ही सभी नागरिक प्रातः स्नान कर गंधक अक्षत पुष्प और जल लेकर संवत्सर का पूजन करते थे हरे भरे सरसों के पीले फूलों के परिधान में लिपटी खेतों पर जाकर किसान पीले सरसों के फूलों का अवलोकन करते हैं तथा गेहूं आदि नई फसल को काट कर घर लाते हैं संवत्सर के पूजन का विधान इस प्रकार है इस दिन नई चौकी अथवा बालू की वेदी पर साफ वस्त्र बिछाकर हल्दी अथवा केसर से रंगे हुए अष्टदल कमल बनाकर उस पर नारियल अथवा संवत्सर ब्रह्मा की स्वर्ण प्रतिमा रखकर ओम ब्रह्मा ने नमः मंत्र से ब्रह्मा का पूजन कर गायत्री मंत्र से हवन करते थे
अरुंधती व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाने वाला अरुंधती व्रत प्रजापति कर्दम ऋषि की पुत्री और महर्षि वशिष्ठ की धर्म पत्नी थी सोभाग्य चाहने वाली महिलाएं उनसे चरित्र की प्रेरणा देती है फलश्रुति है कि इस व्रत को करने से बाल वैधव्य दोष का परिहार होता है यह व्रत चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से शुरु होकर तृतीया को पूर्ण होता है इस व्रत के पूजन का विधान इस प्रकार है किसी नदी अथवा घर में स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है दूसरी अधीन जितिया को नवीन धान्य पर कलश रखकर उसके ऊपर अरुंधति वशिष्ठ और ध्रुव की तीन मूर्तियां स्थापित की जाती है गणपति के पूजन के बाद शिव पार्वती का पूजन किया जाता है तृतीया को इस व्रत की समाप्ति होती है इस व्रत की कथा इस प्रकार है प्राचीन काल में किसी विद्वान ब्राम्हण की कन्या छोटी उम्र में विधवा हो गई एक दिन यमुना नदी में स्नान करके वह शिव पार्वती का पूजन कर रही थी कि स्वयं आशुतोष उस रास्ते आकाश मार्ग से निकले पार्वती ने शंकर से उसके बाल वैराग्य का कारण पूछा शिव ने कहा देवी पहले जन्म में यह लड़की पुरुष थी और ब्राम्हण परिवार में इसका जन्म हुआ था परंतु दूसरी स्त्री में आसक्ति रखने के कारण इसे नारी का जन्म मिला अपनी विवाहिता पत्नी को दुखी रखने हेतु वैधव्य का दुख उठाना पड़ रहा है पार्वती ने पूछा प्रभु इस पाप का प्रायश्चित किस विधि से हो सकती है शंकर ने कहा आज से बहुत पहले जन्मी हुई सती अरुंधती के पावन चरित्र को स्मरण करती हुई यह बालिका यदि अपना शरीर त्याग दे तो इसे अगले जन्म में सदाचार प्राप्त करने की बुद्धि प्राप्त होगी और इसके बाल वैधव्य का परिहार हो जाएगा देवी पार्वती अवसर पाकर उस बालिका के सामने पहुंची इस व्रत के दोष और गुण को समझाती देवी अरुंधति के चरित्र पतिव्रत धर्म का महत्व और अपने जीवन को सुखी बनाने के मर्म को समझाया पार्वती के कथनानुसार बालिका ने देवी अरुंधति का स्मरण करते हुए शरीर क्या किया जिसके फलस्वरूप उसे दूसरे जन्म में सुखी गृहिणी जीवन प्राप्त हुआ।


आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है उसी दिन से कार्तिक के नियमों का प्रारंभ हो जाता है इसी दिन कोजगरा का त्यौहार भी धूमधाम से मनाया जाता है चंद्रमा की रोशनी में 108 बार सुई में धागा पिरोने से आंख की ज्योति बढ़ती है सिडको रात भर उस में रखते हैं तथा इसका प्रसाद का तत्काल सबको दिया जाता है कहा जाता है कि इस दिन रात्रि में चंद्रमा अमृत की वर्षा करते हैं कोजगरा के अवसर पर प्रदोष में लक्ष्मी के पूजन का विधान है इस दिन सभी घरों और आवास के समय मार्गों को साफ-सुथरा करना चाहिए शरीर मैं चंदन आदि का लेप लगाकर शरीर को सुगंधित करना चाहिए स्त्रियों बालकों वृद्धों तथा मूर्खों को छोड़कर और लोगों को दिन में भोजन नहीं करना चाहिए प्रदोष के समय द्वार के ऊपर भित्ति पर भव्य वाहन पूर्णेंदु भाइयों के साथ रूद्र स्कंद नंदीश्वर मुनि सूरज सूरभी निकुंभ लक्ष्मी इंद्र तथा कुबेर की पूजा करनी चाहिए जिनके पास भैरव व वरुण की पूजा करें जिनके पास हाथी हो वह विनायक की पूजा करें जिनके पास घोड़े हो वह दयमंती की अरे मंत्र की पूजा करें जिनके पास गाय हो सुरभि की पूजा करें पूजा की विधि इस प्रकार है दैनिक क्रिया संपन्न कर व्रत किया हुआ व्यक्ति स्वच्छ आसन पर बैठकर गणपति आदि देवता सहित विष्णु की पूजा कर संकल्प करें द्वार को जल से अभिसिंचित कर गंध अक्षत से द्वारा भित्ति पता है नमः कसकर वास्तु की पूजा करें इस प्रकार पूजा विधि संपन्न कर लक्ष्मी की पूजा करें पूजा समाप्त होने के उपरांत प्रसाद ग्रहण कर भोजन करें तथा बंधुओं के साथ भोजन करें इसी दिन ऑफलाइन शाखा वाली रोहा सी यूज़ कर्म करते हैं पूर्णिमा की रात्रि में आकषक लीगा अक्षय क्रिडा या परसों का से खेल खेला जाता है स्कंद पुराण के अनुसार कोजगरा व्रत को सर्वश्रेष्ठ व्रत माना गया है आश्विन मास की पूर्णिमा को कौमुदी यह कहा जाता है

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