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स्तोत्रों की अविच्छिन्न परंपरा

सूत्र साहित्य की परंपरा अत्यंत ही प्राचीन है वेदों में जहां विभिन्न देवी-देवताओं की स्थितियां मिलती है वही परवर्ती साहित्य रामायण महाभारत तथा पुराणों में भी स्तोत्र साहित्य बिखरे पड़े हैं इन ग्रंथों में विभिन्न संप्रदायों के आराध्य देवताओं की स्थितियां मिलती है जैसे शैव संप्रदाय के लोग शिव की उपासना परख स्तोत्र साहित्य दुर्गा तथा शक्ति से जुड़े हुए देवियों के लिए सख्त साहित्य राम कृष्ण भगवान विष्णु के लिए वैष्णव स्तोत्र साहित्य आदि विपुल संपदा में स्तोत्र साहित्य बिखरे पड़े हैं उनके अनुरागी भक्तों पंडितों ने अपने अपने आराध्य की स्थिति में अपने देव विशेष को अपना सर्वस्य न्योछावर करने के लिए पुत्रों का गायन करते रहे इसके द्वारा अभीष्ट प्राप्ति करना देवताओं के नाम गुण कर्म और रूप सौंदर्य का वर्णन करके अपना अभीष्ट प्राप्त करना सूत्र साहित्य का मुख्य लक्ष्य रहा है दार्शनिक और अलंकारिक सौंदर्य से भरपूर स्तोत्र साहित्य भी प्राप्त होते हैं अधिकांश स्तोत्र साहित्य अलौकिक सुख के साथ पारलौकिक मोक्ष तथा लोकल कल्याण कार्य के लिए लिखी गई है वेदों से लेकर परवर्ती साहित्यकारों कालिदास श्रीहर्ष आदि के काव्य में मधुरिमा आशीर्वाद प्राप्त होता है इस संकलन में विभिन्न देवी-देवताओं से संबंधित चित्रों का संकलन किया गया है जोकि रामायण महाभारत श्रीमद् भागवत कथा परवर्ती ज्ञात अज्ञात कवियों द्वारा रचित है मिथिला में जहां मेरी जन्मभूमि है वहां पंचदेव उपासना की परंपरा है वहां विष्णु शिव दुर्गा गणेश और शिव की उपासना प्राप्त की जाती है इन्हीं पांच देवताओं के स्तोत्र विपुल मात्रा में प्राप्त भी होते हैं अवतारों में विष्णु के 24 तथा मुख्य 10 अवतार और उनकी शक्ति लक्ष्मी सीता राधा आदि की उपासना वंदना करके अद्भुत अलौकिक और अलौकिक सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए सूचियां प्राप्त होती है इसमें उनके अलौकिक सौंदर्य रूपों और विविध लीलाओं का वर्णन प्राप्त होता है अध्यात्म प्रधान भारतीय इन देवताओं से इतने प्रभावित हुए इन साहित्य से इतने प्रभावित हुए कि बाद में तोत्र साहित्य शतक साहित्य के रूप में स्वतंत्र काव्य की रचना होने लगी इन चित्रों को 4 वर्गों में विभाजित किया जाता है एक तोत्र दो पौराणिक स्तोत्र 3 रामायण कथा महाभारत के स्तोत्र 4 स्वतंत्र लेखकों के द्वारा सूट स्तोत्र साहित्य और 5 काव्य में प्रयुक्त स्तोत्र 
वेदों में स्थितियां ऋग्वेद में इंद्र विष्णु रुद्र आदि देवों के अनेक मंत्र उनकी अलौकिक महिना महिमा को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है किंतु संगीता में कहे गए सूत्रों में अथर्ववेद के मंत्र अपेक्षाकृत अधिक विकसित रूप में प्राप्त होते हैं इंद्र विष्णु प्रजापति के अतिरिक्त रुद्र का भयंकर रूप भी हमें ऋग्वेद उसके बाद अथर्ववेद में प्राप्त होता है यजुर्वेद का रूद्र अध्याय 65 मंत्रों में रूद्र को अति सुंदर निर्भीक हजारों आंखों वाला श्रीकंठ नीलकंठ आदि रूपों में प्रस्तुत करता है तोतों का मूल भी हम यहां देख सकते हैं वैदिक संस्थाओं की अपेक्षा ब्राम्हण उपनिषद ग्रंथों में रुद्र का महत्व और अधिक बढ़ गया है अग्नि तो वेद का बड़ा ही महत्व शाली महिमामंडित देव है सूर्य की भी कम महत्व नहीं है इसी प्रकार वार्ड सरस्वती उषा बृहस्पति की स्थितियां भी पौराणिक सूचियों के एक अच्छे आधार हैं अथर्ववेद अध्यापकों के आगे गत्यात्मक स्तोत्र ओं की सूची भूमिका बना दी थी शुक्ल यजुर्वेद का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है परवर्ती सहस्त्रनाम स्तोत्र ओं की आधारशिला तो है ही कृष्ण यजुर्वेद में देवियों की अवधारणा देखने को मिलती है यहां दुर्गा की मूर्ति भी स्पष्ट रूप से प्रतिष्ठित हो गई है श्री लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती तथा मात्रिक तांत्रिक बीज मंत्रों की अवधारणा यहां स्पष्ट देखी जा सकती है उपनिषद यदि ज्ञान मार्ग का अवलंबन करते हैं फिर भी उनमें स्त्रियों की अच्छी परंपरा देखी जाती है वस्तुतः ज्ञान भक्ति और कर्म इन तीनों का उपनिषद में बड़ा ही मार्मिक ध्यान होता है की प्रशंसा की गई है श्वेता स्वरूप में सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान की गई है वहीं तोता के लिए ज्ञान बुद्धि आदि कामनाओं की प्राप्ति का भी उल्लेख है चांदोग्य तथा में भी तथा मैत्रायणी में भी परम का मनोहारी गान प्रस्तुत करते हैं यज्ञ में वेदो के उद्घाटन वर यूज तोता हुआ करते थे इसमें एक तोता विभिन्न मंत्रों का स्तुति गान करता था देवी तथा गोपालपुर बता अपनी उपनिषद में क्रमशः देवी कथा गोविंद गोपाल का बल्लभ श्री कृष्ण की प्रार्थना की गई है इस प्रकार वैदिक साहित्य स्त्रियों से भरा पड़ा है ।
रामायण में स्तोत्र 
महर्षि वाल्मीकि द्वारा विरचित बाल्मीकि रामायण अलौकिक संतों का प्रथम ग्रंथ माना जाता है इसे आदि काव्य भी कहा जाता है इसमें भगवान श्री राम के चरित्र के साथ अनेक सूत्रों का भी निबंधन है इसमें भगवती गंगा देवी सीता तथा भगवान राम की स्तुति यों के अतिरिक्त राम के द्वारा की गई सूर्य और ब्रह्मा की स्थिति भी अत्यंत मनोहारी तथा अंतः कोणों को शांति प्रदान करती है महर्षि अगस्त द्वारा उपरोक्त आदित्य हृदय स्तोत्र रामायण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है स्तोत्र को मैंने अपने ब्लॉग पर स्थान दिया है रामायण रावण पर विजय पाना राम के लिए जब कठिन हो गया तो महर्षि अगस्त्य ने उन्हें देवाधिदेव जगतपति भगवान शिवजी की पूजा का उपदेश दिया यह आदित्य हृदय स्तोत्र विजय आदि प्रदान करने वाला बताया जाता है इसी युद्ध कांड में ही मंदोदरी द्वारा की गई राम की स्तुति भी अच्छी है रामायण के बाद के काव्य में स्तनों का जो मनोहारी अलंकारिक रूप देखने को मिलता है वह अलंकारिक शुरू रामायण में उपलब्ध नहीं है 
महाभारत के स्तोत्र महाभारत में अनेक तिथियों के दर्शन होते हैं विशेष रूप से यहां सतना में या सहस्त्रनाम का एक विकसित रूप देखा जाता है इसमें पांच स्तोत्र प्रसिद्ध माने गए हैं गीता सहस्त्रनाम स्तवराज अनुस्मृति गजेंद्र मोक्ष J4
 गीता में विश्वरूप दर्शन के समय अर्जुन द्वारा की गई भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति सर्वविदित है जिसमें राजस्थान राज्य तथा गजेंद्र मोक्ष महाभारत के सर्वोत्तम स्तोत्र माने जाते हैं महाभारत में की गई विष्णु भगवान की गत्यात्मक स्तुति अपने पूर्ववर्ती वैदिक विधि का निदर्शन तथा परवर्ती गजब पुत्रों की आधार भक्ति है भगवान रुद्र की स्थिति वेद के रूद्र अध्याय का रूपांतर प्रतीत होती है कृष्ण वेद होने के कारण महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की तमाम खुशियों के अतिरिक्त इंद्र कार्तिकेय सूर्य तथा देवी के शांत और घोड़ों का सुंदर भी यहां देखा जाता है महाभारत के सभी सूत्रों को एकत्र कर देने पर यह एक विशाल ग्रंथ का आकार ले लेता है 
पौराणिक स्तोत्र ऋषि-मुनियों उत्तम उत्तम धार्मिक तथा आध्यात्मिक चिंतन साधना योगिक अनुभूतियों वेदांत असंख्य न्याय आदि दर्शन सेवर वैष्णव शादी संप्रदायों की धरोहर है नवधा भक्ति का व्याख्यान सबसे पहले पुराण में ही देखा जाता है यहीं पर 5 देशों की उपासना और सखियों का प्राधान्य देखा जाता है सिद्ध मंगल स्तोत्र रक्षा कवच कर्म या नेहा शादी इक्षित वस्तुओं को प्राप्त कराने वाले स्तोत्र ओके अगर समुद्र पुराने ही हैं 18 पुराणों तथा पुराणों में अनेक स्तोत्र भरे पड़े हैं धर्म-दर्शन समाज इतिहास के प्रति यज्ञ स्तोत्र अलंकारी ताकि सहज कल्पना की उड़ान तथा ध्वन्यात्मक ताकि सहज अभिव्यक्ति है जिनसे श्रवण पठान अध्ययन उपदेश आदि किसी भी स्थिति में अनिल वचनी आनंद ब्रह्म अनुभूति उन उन दिनों से तादात्म्य स्थापित करना आसान हो जाता है सांसारिक उपग्रहों को विनाश कर ज्ञान वैराग्य को उत्पन्न करने वाली यह सामग्रियां प्राप्त होती है भागवत पुराण में भगवान कृष्ण की स्तुति सबसे अधिक मिलती है इनमें कुंती भीष्म ध्रुव प्रह्लाद तथा गजेंद्र और सुखदेव की स्थितियां अधिक बनी है तथा हृदय को सबसे अधिक स्पर्श करती है कि नहीं सूत्रों की भाषा तो महाकवि कालिदास की सहायता तक को छू जाती है भागवत का नारायण बर्तन ब्रह्मांड पुराण का विष्णु पंजर स्तोत्र शतनाम स्तोत्र भगवान विष्णु के सुंदर प्रस्तुत करते हैं भागवत का स्तोत्र स्तोत्र स्तोत्र स्तोत्र आदि भी उल्लेखनीय है ब्रह्मा वैवर्ता श्री कृष्ण स्तोत्र वासुदेव चरित तथा इंद्र कृत कृष्ण स्तोत्र स्तोत्र तथा उन्हीं की स्थितियां कृष्ण स्तोत्र के अच्छे उदाहरण है भागवत में राम स्तोत्र अध्यात्म रामायण का राम हृदय स्तोत्र भी अतिशय माधुरी का विस्तार करता है श्री कृष्ण गोपाल स्तोत्र शतनाम स्तोत्र भी गणित किए जाने योग्य है नारद पुराण का दत्तात्रेय स्तोत्र भविष्य पुराण का स्तोत्र शतनाम स्तोत्र स्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं देवों के उदाहरण स्वरूप पुत्रों में ब्रह्मांड पुराण का सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र ब्रह्म पुराण का लक्ष्मी कवच कालिका पुराण ब्रह्मांड का ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्रम भविष्य का मोहिनी कवच पद्म पुराण का संकटनाशन स्तोत्र देवी पुराण रात्रि सूक्त नारायणी स्तुति सकरा देवी स्तुति वराह पुराण का चंडी कवच आदि उल्लेखनीय हैं
 शिव संबंधी स्थितियां दो से ही चली आ रही है पुराणों में शिव पुराण भगवान शिव की स्थितियों से भरा पड़ा है इसके अतिरिक्त का शिव कवच स्तोत्र मार्कंडेय पुराण का महामृत्युंजय स्तोत्र का शिवराज का हिमालय कृत शिव स्तोत्र कल्कि पुराण का शिव स्तोत्र काशीपुरा दिस भगवान भूत भावन विश्वनाथ की सुंदर स्तुति प्रस्तुत करता है वस्तुतः कोई भी ऐसा पुराना नहीं है जिसमें सभी देवों की स्तुति ओं भारतीय धर्म समाज में गणेश की सर्व देवों से पहले पूजा होती है क्योंकि वह विघ्न विनायक विघ्नेश भंजन देव हैं इनके स्तोत्र में गणेश पुराण का गणेश कवचम् मयूरेश्वर स्तोत्रम गणेशा अष्टकम मुद्गल की गणेश मानस पूजा गणेशा स्तोत्र शतनाम स्तोत्र नारद पुराण का संकटनाशन गणेश स्तोत्र प्रमुख स्तोत्र हैं सूर्य भगवान की स्तुति ओं में भ्रम है या मलका त्रैलोक्य मंगल कवच भविष्य उत्तर का आदित्य हृदय स्तोत्र प्रमुख स्तोत्र है इसी प्रकार भागवत पुराण कल की मत्स्य तथा स्कंध आदि पुराणों में भगवती गंगा यमुना आदि पवित्र नदियों की अनेकानेक स्तोत्र निबंध है नारदीय अग्नि हरिवंश तथा पुराणों में भी प्राय सभी देवों की स्थितियां अपने पूर्ण परिपथ तथा हर प्रकार से परिपूर्ण अवस्था में पाई जाती है जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है समग्र पौराणिक ब्रह्मा ब्रह्म परमात्मा उसकी माया के विविध रूप ब्रह्मा विष्णु महेश लक्ष्मी सीता राधा सरस्वती शिवा पर्वती गणेश सूर्य इंद्र आदि के विविध लीलाओं के अक्षय अगाध अनंत रचना करें इनसे ज्ञान विराग ऐश्वर्या की मुक्ति मोक्ष की जितनी भी मनिया चाहे आप निकाल सकते हैं उपर्युक्त पौराणिक सूत्रों के अतिरिक्त अन्य स्तोत्र भी इस श्रेणी में लिए जा सकते हैं इसमें पद्म पुराण का गणेशा गणेश पुराण का गणेश सहस्त्रनाम स्तोत्र गर्ल का प्रह्लाद कृत गणेश स्तोत्र स्तोत्र देवर से गजानन स्तोत्र वामन पुराण का विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्रम कल्कि पुराण का विष्णु राज भविष्य पुराण शालिग्राम शीला स्तोत्र स्कंद का प्रदोष स्तोत्र आत्मा वीरेश्वर स्तोत्र पद्म का संकट अष्टक स्तोत्र सरस्वती अष्टक स्कंध का शीतला अष्टक कल्कि का गंगा स्तवन मत्स्य का प्रयागराज आज तक प्रसिद्ध स्तोत्र है इन्हीं की परंपरा में स्कंद पुराण का ऋण मोचन मंगल स्तोत्र अंगारक स्तोत्र ब्रह्मा व्रत का बुध का बृहस्पति स्तोत्र पद्म का बुध पंचवती नाम स्तोत्र ब्रह्मांड का सुख कवच सनी पसंद का ही राहु स्तोत्र केतु पंचमी सती नाम स्तोत्र ब्रह्मांड का नवग्रह स्तोत्र तुलसी का वचन तथा नरसिंह का मत्यास तक आदि लोकोपयोगी तथा जन जन के नित्य प्रयोग में लाए जाने वाले अच्छे स्तोत्र गिने जाते हैं पुराण तो देवताओं की स्तुति यों तथा स्त्रोतों के दूसरे रूप है पौराणिक स्तोत्र स्तोत्र यहां बेर महाभारत की परंपरा के अनुसार गद्य में भी लिखे गए हैं वहीं इनकी छंद अलंकार तथा ध्वनि योजना अपूर्व कांति का माधुर्य करती है धर्म तथा कर्मों में रोग तंत्र प्रयोग में पौराणिक स्तोत्र का पाठ होते रहता है इनका दार्शनिक महत्व भी चरम सीमा तक पहुंचा हुआ है 
लौकिक संस्कृत काव्य में स्तोत्र 
वैदिक काल से सतत प्रवाह मान स्तोत्र पुराणों में समृद्ध तथा परिपूर्ण होती हुई बाद के अलौकिक काव्य और कवियों की सहज गई है काव्य नाटक की छंद अलंकार रस भाबनी भूसा मंडी जनमानस को सिद्ध करती चली जा रही है लौकिक संस्कृत योग में देव अस्थियों के रूप ही नहीं बदले नई परिस्थितियों में वैदिक देवों के स्वरूप में भी काफी परिवर्तन आया वेदों का सबसे अधिक जाना पहचाना तथा महिमामंडित देवता इंद्र यहां एक सहायक इंद्रासन का अधिकारी शतक रितु मात्र होकर लग गया विष्णु शिव की प्रधानता सर्वत्र व्याप्त हो गई कवियों ने देवताओं का मानवीकरण कर उसमें मानवीय गुणों का आरोप करते हुए उसे प्रेमी पूज्य पूजक सखा वल्लभा प्रेसी आदि का भी संबंध स्थापित किया कवि स्वयं काव्य जगत का ब्रह्मा बन बैठा लौकिक संस्कृत काव्य में कवि कालिदास अपनी सहज स्वभाव की कविता की कविता के कारण विश्व विश्व अर्थ है परम सेव होने के नाते उनके नाटकों में मंगल रूप भगवान शिव की वंदना तो है ही रघुवंश महाकाव्य के 10 वर्ग में भगवान विष्णु की भी स्तुति की गई है रावण से संतृप्त चतुर्मुख ब्रह्मा विष्णु के पास पहुंचे इनके स्तोत्र भगवान के वैदिक स्वरुप को उभारने के साथ-साथ काव्य सौंदर्य का अद्भुत सामंजस्य स्थापित करते हैं कालिदास ने कुमारसंभव में ब्रह्मा के मुख से शिव स्तुति कराई है इसके बाद कुमार दास के जानकी हरण के द्वितीय सर्ग में भगवान विष्णु की स्तुति कालिदास की शैली में प्रस्तुत की गई महाकवि भारवि भी सेव है उनके काव्य किरातार्जुनीयम् में स्वाभाविक तौर पर भगवान शिव की स्तुति मिलती है युद्ध में कि रात में सुधारी भगवान शिव से त्रस्त हो जाने पर थके हुए शिवभक्त अर्जुन ध्यान लगाकर देखते हैं तो भगवान को पहचान लेते हैं और वह अपने आराध्य देव की स्तुति करने लग जाते हैं किरातार्जुनीयम् के 18 में सर्ग में स्तुति अपनी अलंकारिक शैली में प्रस्तुत है महाकवि माघ की अमर कृति शिशुपाल वध महाकाव्य में क्रमशः प्रथम और 14 वर्ग में नारद और युधिष्ठिर भीष्म के मुख से श्री कृष्ण का प्रस्तुत कर आते हैं भाषा कठिन होने पर भी यहां का संयोग है यह सभी कवि ईशा के एक शतक पूर्व से लेकर 21 तक के माने जाते हैं 
काव्य परंपरा में ही द्वादश शतक के श्रीहर्ष ने अपने नैषधीयचरितम् महाकाव्य के 21 में स्वर्ग में भगवान विष्णु की स्तुति की है यहां भगवान को सूक्ष्म से सूक्ष्म महान से महान बताते हुए अहिंसा में उन्हें भगवान बुद्ध के समान बताया गया है अलंकारिक तथा पंडित कवि होने के नाते श्री हर्ष ने अपनी कविता में नमक आदि अलंकारों का भी अच्छा पुट दिया है यहां व्याकरण का पांडित्य तो हर जगह बिखरे पड़े हैं नमी शताब्दी के कवि रत्नाकर का हर विषय महाकाव्य में कवि ने 200 श्लोकों में भगवान शंकर तथा 170 श्लोकों में चंडिका देवी का स्तोत्र किया है यह स्तोत्र गौरी रीति में निबंध होने के साथ-साथ पौराणिक भावों को लेते हुए जैन बौद्ध पद्धति को भी समाविष्ट किए हैं रत्नाकर की वक्रोक्ति पचासी का आहार्य कविता सम्मानित होने पर भी प्रकारांतर से भगवान शिव की वंदना प्रस्तुत करती है 
स्तोत्रों की अविच्छिन्न परंपरा 
स्तोत्र कार्यों की परंपरा में आचार्य शंकर को सर्वप्रथम रखा जा सकता है जिनका समय ईशा के कई शताब्दी पूर्व से लेकर ईशा की कई शताब्दी बाद तक भिन्न-भिन्न मतों से निर्धारित किया गया है महाकवि बाण सम्राट हर्षवर्धन के सभापंडित और हर्ष चरित कथा कादंबरी नामक आख्यायिका तथा कथा काव्य के लेखक थे बांधने भगवती की स्तुति में 100 श्लोकों में चंडी शतक लिखा है स्तोत्र की भाषा प्रांजल तथा अलंकारिक होने पर भी भक्ति भावना से परिपूर्ण है इसके अतिरिक्त उन्होंने कादंबरी में ब्रह्मा त्रिगुणात्मक परमेश्वर तथा भगवान शिव की वंदना की है हर्ष चरित में उन्होंने तीन लोक के मूल कारण भगवान शिव तथा भगवती पार्वती को नमस्कार किया है बाण के समकालीन तथा उनके संबंधी कवि मयूर ने भगवान सूर्य की स्थिति में सूर्य शतक लिखा कहा जाता है कि मयूर को श्राप बोर्ड हो गया था भगवान सूर्य का शतक लिखकर वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए थे तो तुर्की भाषा अत्यंत और भी है शैली की हड़ताल या श्रीहर्ष किसी की भी कृति से तुलना की जा सकती है बाण मयूर के पूर्ववर्ती महाकवि कालिदास के नाम से दो स्तोत्र ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है भगवती काली की स्तुति में लिखा गया काली स्तोत्र तथा जगत पावनी गंगा देवी के तब हमें अष्टक स्तोत्र है 
भगवान आचार्य शंकर 
शंकराचार्य के साथ अनेक प्रसिद्ध स्तोत्रों का नाम जुड़ा हुआ है सूत्रों के अतिरिक्त उन्होंने ब्रह्मा सूत्र गीता और उपनिषदों पर भाषा लिखे हैं उनके स्तोत्र हैं

 इसके अतिरिक्त अन्य स्त्रोतों को मिलाकर कुल 200 से भी अधिक स्तोत्र भगवान शंकर के नाम से उपलब्ध हैं इन स्तोत्र ओं में भक्ति शिव तथा शक्ति तंत्र वेदांत दर्शन आदि के घनत्व उपदेश सरस्वत सरल संयोग राही हृदय को स्पर्श करने वाले व्यंजन आत्मक शब्द माधुरी में गठित अलंकार रस भरी सहज ही मन को मोह लेते हैं इन सूत्रों की सबसे बड़ी विशेषता है यह तथा मिठास के साथ साथ भक्ति का अविरल प्रवाह आदि होने पर भी आचार्य शंकर ने भक्ति को ही मोक्ष का परम साधन माना है
 मूयूर कवि
 आचार्य शंकर की परंपरा में बीच में आचार्य और भक्ति नामक कामाक्षी स्तोत्र लिखा जिसे मुख पंचशती भी कहा जाता है इनका समय 300 96 ईसवी से 436 भी माना जाता है उनके तथा मणि और मेथी की पर्याप्त की है कहा जाता है कि वह जन्म थे भगवती की कृपा से शक्ति प्राप्त की और उनकी स्थिति में उन्होंने 500 श्लोकों में उक्त पंचशती का पूर्णिया परीक्षाओं के नाम है आर या पार बिंद कटाक्ष तथा मृतकों की गंभीरता में दुर्वासा की क्षति या ललिता रत्न से समानता रखती है
 आचार्य कुलशेखर 
केरल के राजा कुल शेखर 700 ईसवी ने भगवान विष्णु की स्तुति में मुकुंद माला नामक स्तोत्र की रचना की थी वैष्णव संत कुल शेखर अलवर से अभिनय है 
कवि पुष्पदंत आशुतोष भगवान शंकर की स्तुति में लिखा गया महिम्न स्तोत्र पुष्पदंत कभी की अमर कृति तथा भक्त समाज का ह्रदय रखना है कहा जाता है कि पुष्पदंत भगवान शिव के पार से चरण से अपराध व शिव के हिसाब से गंधर्व हो गए बाद में उक्त स्तोत्र का निर्माण कर भगवान को प्रसन्न कर लिया और पुनः अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर गए कथासरित्सागर के अनुसार पुष्पदंत स्नेही कात्यायन के रूप में अवतरण होकर स्तोत्र का प्रण किया था विष्णु तंत्र में पुष्पदंत को विष्णु का गण बताया गया है इनका वास्तविक नाम समय अज्ञात है परवर्ती कृपया ग्रंथों में महिम्न स्तोत्र के अनेक पद्य प्रस्तुत किए गए हैं जिनके आधार पर पुष्पदंत को नवी शताब्दी के पूर्वार्ध में स्थापित किया जाता है इनके स्तोत्र में कुल 40 लोग हैं या स्तोत्र विचारों सहज शुद्ध भक्ति तथा भगवान शिव को समानता सर्वोच्च सत्ता के रूप में प्रतिष्ठित करता है कभी ने यहां शिव के सगुण निर्गुण दोनों रूपों की अवतार अवतार ना की है बाण तथा में मयूर के शतकों की शैली में लिखा गया स्तोत्र रस भाव अलंकार और सर्वज्ञ है जिसकी तरंग में पाठक अपने आप को सर्वथा भूल जाता है लघु आकार होने पर भी कितना महत्वपूर्ण स्तोत्र इससे पता चलता है कि ईश्वर अब तक 20 से अधिक की गाएं लिखी जा चुकी है मधुसूदन सरस्वती तथा श्री राम कृष्ण स्तोत्र से प्रभावित हुए थे गणेश महीना स्तुति नाम की रचना भी इन्हीं आचार्य की मानी जाती है 
इस काल में लक्ष्मण आचार्य ने 50 लोगों का चंडी कुछ पंचायत सी का लिखी पुष्पदंत के ही समकालीन तथा कश्मीर के राजा अवंती वर्मा के आश्रित का भी अन्य लोक काव्य शास्त्रीय ध्वनि ग्रंथ के प्रणेता कार्य शास्त्री आचार्य आनंद वर्धन ने देवी पार्वती की स्तुति में देवी शतक कब पूर्ण किया 
उत्पल देव 
आचार्य अभिनव गुप्त के गुरुजनों में उत्पल देव का प्रमुख स्थान है उनका समय दर्शन शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता है भगवान शिव के अनुपम अनुराग से उन्होंने शिव स्तोत्र आवली की रचना की इसमें विभिन्न प्रकार के 21 पुत्र हैं सभी भगवान शिव के अनुपम कार्यों की प्रशंसा में लिखे गए हैं यहां कभी भगवान के महत्व का गुणगान है तो कभी उनके अलौकिक कृतियों का वर्णन और कभी उनके विभिन्न नामों का महत्व प्रतिपादन भारद्वाज भक्ति को यहां मोक्ष रस कहा गया है कविता गई होने पर भी रूपक आदि अलंकारों की योजना से मंडित है कश्मीरी होने के कारण आचार्य बलदेव और उनकी इस कृति को सहवाग में महत्वपूर्ण स्थान है
 नवी शताब्दी के ही कभी शाम बने भगवान सूर्य की स्थिति में शांबिका लिखी रामानुजाचार्य के गुरु यमुनाचार्य 10 वीं शताब्दी ने चतुश्लोकी लक्ष्मी की स्तुति स्तोत्र विष्णु की स्तुति तथा राम प्रेमाश्रम की रचना की 11वीं शती के खेमराज ने शिव स्तोत्र तथा भैरव अनुक्रम स्तोत्र लिखा इसी समय पूर्व क्षेत्र श्री रामानुजाचार्य ने आत्म गीत कब लिखा शरणागत तथा श्री आचार्य श्री रामानुज के शिष्य श्री बसंत ने सृष्टि मानव व राजस्व तथा बैकुंठ स्तोत्र का निर्माण किया इन्हीं के पुत्र पराशर भट्ट ने श्रीरंग राजस्तव नाम के स्तोत्र की रचना कविताएं गीत गोविंद कार जयदेव कृष्ण लीला गीत गीत गोविंद को श्रृंगार काव्य माना जाता है यह उत्तम गीतिकाव्य है जयदेव ने भगवती गंगा की स्थिति में गंगा नामक प्रसिद्ध स्तोत्र ग्रंथ भी लिखा 

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