A part of sanskritbhasi blog

काव्यशास्त्र और काव्यशास्त्रकार


एक प्राचीन शास्त्र है जिसे काव्यालंकार अलंकार शास्त्र साहित्यशास्त्र और क्रिया कल्प के नाम से अभिहित किया जाता है वैदिक ऋचा में काव्य शास्त्र के उत्साह दिखाई पड़ते हैं काव्यशास्त्र का क्रमबद्ध सुसंगठित और सर्वांगपूर्ण समारंभ भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से होता है भरतमुनि ने समस्त काव्य घटकों को अपने शास्त्र में स्थान दिया और उसकी विवेचना में नारी दृष्टि प्रधान हो गई यही कारण था कि ना के शास्त्रीय परंपरा से अलग काव्यशास्त्रीय चिंतन का सूत्रपात हुआ उसके अनंतर भामह दंडी बामन आनंदवर्धन कुंतल जैसे मनीषी आचार्यों की श्रृंखला अपने विचारों से क्रमशः काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों को परिपुष्ट करते रहे व्यक्तिगत काव्य चिंतन और मौलिक काव्य दृष्टियों के कारण परवर्ती काल में अनेक काव्यशास्त्रीय संप्रदायों का उद्भव हुआ भरत से भामा तक जो काव्यशास्त्र अपनी सेवा वस्था में था मामा से आनंदवर्धन तक आते-आते तरुणाई को प्राप्त हुआ 600 विक्रम संवत भामा से 800 विक्रम संवत आनंदवर्धन का काल साहित्य शास्त्रीय संपन्नता का काल माना जाता है इन 200 वर्षों में ही विभिन्न संप्रदायों के मौलिक ग्रंथों का निर्माण हुआ अलंकार रीति रस ध्वनि इन चार संप्रदायों का उद्भव इन हिंदी 200 वर्षों में हुआ विवेचन की सुविधा को दृष्टि में रखते हुए तथा ध्वनि सिद्धांत को केंद्र में रखकर काव्यशास्त्रीय परंपरा को तीन भागों में बांटा जा सकता है एक पूर्व ध्वनि काल अज्ञात से आनंदवर्धन तक 800 विक्रम संवत ध्वनि काल आनंदवर्धन से मम्मट तक 800 से 1050 विक्रम संवत तक उत्तर ध्वनि काल मम्मट से जगन्नाथ तक 1050 से 1750 विक्रम तक पूर्व ध्वनि काल अग्नि पुराण को सम्मिलित करते हुए यह काल भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से आरंभ होता है और इस काल के अंतिम आचार्य रुद्रट थे था तथापि पूर्व ध्वनि काल के साहित्यकार में अलंकार संप्रदाय का प्रभुत्व था इस काल के गणमान्य आचार्यों में भामा दंडी उद्भट वामन वडोदरा की दृष्टी काव्य के बहिरंग विवेचन में लगी रही इसीलिए रस अथवा ध्वनि को यह आचार्य विवेचित नहीं कर सके भामा दंडी उद्भट रुद्रट सभी की दृष्टि ने काव्य में अलंकार की प्रधानता को स्वीकार किया तथा रस को भी अगर सवाद अलंकार के रूप में इसी में समाहित किया दंडी ने तो काव्य को शोभा परख समस्त धर्म अलंकार शब्द से वाक्य है कह कर अपना अंतिम निष्कर्ष दे दिया आचार्य वामन ने सिमी क्षेत्रों में रहते हुए भी अपनी मौलिकता का परिचय दिया और अलंकार को स्वीकार किया परंतु उन्होंने काव्य अलंकार को ग्रहण किया लेकिन स्पष्टता कहा कि सुंदरी ही अलंकार है और सुंदरी का सृजन गुण करते हैं उपमा दी अलंकार उसकी शोभा में वृद्धि करते हैं काव्यात्मक की चर्चा के प्रसंग में उन्होंने इसी सत्य का उद्घाटन किया वामन के अनुसार काव्य की आत्मा रीति है रीति विशिष्ट पद संघटना है अतः अस्पष्टता वामन ने भामा दंडी रुद्रट की अपेक्षा अलंकार को एक व्यापक भूमि प्रदान की भामा और मौत बामन के ने दो संप्रदायों के प्रवर्तक दृष्टि को जन्म दिया भामह की प्रतिष्ठा अलंकार संप्रदाय के प्रवर्तक के रूप में हुई और रमन रीति संप्रदाय के जन्मदाता माने जाते हैं अलंकार संप्रदाय की अपेक्षा रीति संप्रदाय को अधिक अंतर्मुखी माना जाता है बामन उस अंतरतम को नहीं प्राप्त कर सकें जिसे आनंदवर्धन ने प्राप्त किया क्योंकि बामन ने गुण को ही प्रधानता देकर विराम ले लिया वस्तुतः वामन ने गुणों की आश्रय की दृष्टि से विचार नहीं किया इसीलिए वह अपनी ध्वन्यात्मक अनुभूति को अभिव्यक्ति नहीं दे सके उसको ही साहित्य के प्रमुख तुम तत्व आत्मा के रुप में घोषित करने वाले आनंदवर्धन के लिए वामन ने ही इस प्रकार की पृष्ठभूमि का निर्माण किया
आचार्य भरत
संस्कृत काव्यशास्त्र के प्राचीन आचार्य में आचार्य भारत का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है इनके द्वारा लिखित काव्य शास्त्र ग्रंथ नाट्यशास्त्र प्राचीनतम उपलब्ध कृतियों में से एक है यह कृति काव्यशास्त्र विषयक विश्वकोश है काव्य के लक्षण ग्रंथों में पहला स्थान नाट्यशास्त्र को प्राप्त होता है काव्यमीमांसा में राजशेखर ने भरत मुनि के साथ-साथ सहस्राक्ष सुवर्णा नाम प्रचेता जन स्वास्थ्य पराशर इत्यादि अनेक साहित्य आचार्यों के नाम का उल्लेख किया है भरत ने भी नाट्यशास्त्र में नंदीकेश्वर का उल्लेख किया है किंतु इनमें से किसी भी आचार्य की कृति आज उपलब्ध नहीं है अतः भरत विरचित नाट्यशास्त्र ही काव्यशास्त्र का सर्व प्राचीन तथा प्रमुख ग्रंथ है आचार्य भारत को भारतीय आलोचकों के साथ-साथ पाश्चात्य आलोचकों ने भी मुक्त कंठ से प्रशंसा की नाट्यशास्त्र का लक्ष्य नाटक की रचना तथा अभिनय है फिर भी इसमें काव्यशास्त्र के समस्त रोगों का सर्वांगीण एवं सूक्ष्म विवेचन किया गया है आचार्य भरत ने सर्वप्रथम यह प्रतिपादित किया की काव्य का प्रमुख तत्व रस है और यह विभाव अनुभाव और व्यभिचारी भावों से निष्पन्न होता है बाद के आचार्यों ने ना कि शास्त्र को आधार बनाकर काव्यशास्त्रीय ग्रंथों की रचना की भारत और उनका काल
नाट्यशास्त्र पर अब तक हुए पर्याप्त अनुसंधान के बाद भी इस ग्रंथ के रचना का समय ज्ञात नहीं हो सकता है परंतु इतना अज्ञात है कि इसकी रचना भाष और कालिदास के पहले हो चुकी थी क्योंकि इन काव्य कारों की रचना में इस ग्रंथ की जानकारी उपलब्ध होती है युधिष्ठिर मीमांसक ने भरत मुनि का समय 500 ईसवी पूर्व से 1000 ईसवी तक के बीच में माना है हर प्रसाद शास्त्री ने भी भरतमुनि को 2000 ईसवी पूर्व स्वीकार किया है डॉक्टर किट का मानना है कि वह 300 ईसवी के लगभग रहे होंगे मैकडोनाल्ड 600 ईसवी और इसके 800 ईसवी में मानते हैं परंतु भारतीय परंपरा के अनुसार आचार्य भारत का समय वैदिक काल के बाद तथा पुराण काल के पहले माना जाता है इससे यह सिद्ध होता है कि ना के शास्त्र की रचना कालिदास से पहले हो चुकी थी कालिदास का समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी है इसलिए भारत को ईसा पूर्व दुखी शताब्दी या इसके पूर्व का माना जाना चाहिए ना कि शास्त्र में कुल 36 अध्याय हैं इस पर इस में जाति की उत्पत्ति नाटक के लक्षण स्वरूप नाट्य मंडप उनके भेद परीक्षा गृहों की रचना परीक्षा भवन जवानी का रंग देवता की पूजा तांडव नृत्य की उत्पत्ति तथा इसके उपकरण पूर्वरंग नांदी प्रस्तावना रस का स्थाई भाव अनुभाव विभाग तथा व्यभिचारी भाव आंगिक वाचिक साथी तथा आचार्य यह चालू अभिनय हस्त अभिनय शरीर अभिनय अभिनय की गति धन और विज्ञान का प्रदर्शन व्यायाम स्त्रियों द्वारा पुरस्कार तथा पुरुष द्वारा स्त्रियों का अभिनय पांचाली अवंती दाक्षिणात्य और मागधी इंचार्ज प्रवृतियों का विवेचन छंदों के भेद अलंकारों के स्वरूप तथा इसके भेद भाषा का विधान किस पात्र को संस्कृत में बोलना है और किस पात्र को प्राकृत में सात स्वर उपरूपक रूपक तथा उसके दसवीं चित्र विनय देवी और आप मानसी सिद्धियों का वर्णन चार प्रकार के बाद के सात प्रकार के स्वरूप कुर्तियों और जातियों का वर्णन आरोही अवरोही स्थाई एवं संचार विभाग का वर्णन मीणा की विधि बांसुरी के स्वर ताल और लय का भेद गायक तथा वादक की योग्यता संगीत के आचार्य तथा शिष्य की योग्यता वादियों का विवेचन मर्दानगी प्रणाम दर्द दूर तथा अवनद्ध वाद्य चमरा मरे हुए भाग्य का वर्णन अंतापुर की सरकार और राज्य सेविकाओं के गुण सूत्रधार पहाड़ी पार्श्विक नॉट अ कार विद रेट नायिका आदि के गुण विधि पात्रों की भूमिका नाक की भूमिका अवतरण हड्डियों के नाम उनके द्वारा किए गए प्रश्न नेट बंद क्यों की उत्पत्ति का इतिहास और नाट्यशास्त्र का वर्णन विवेचित है
अंतापुर की सरकार और राज्य सेविकाओं के गुण सूत्रधार पहाड़ी पार्श्विक नाटककार पीट-पीट नायिका आदि के गुण विधि पात्रों की भूमिका नाक की भूमिका अवतरण हड्डियों के नाम उनके द्वारा किए गए प्रश्न नट बंधुओं की उत्पत्ति का इतिहास और नाट्यशास्त्र का वर्णन विवेचित है नाट्यशास्त्र की टीका हे नाट्यशास्त्र लोकप्रिय रचनाओं में से एक है अतः इस पर अनेक दिखाएं लिखी गई परंतु अभी केवल एक ही थी का उपलब्ध होता है वह है अभिनवगुप्त कृत अभिनव भारती की का इसे नॉन वेज विभूति नाम भी दिया गया है अभिनवगुप्त की टीका में अनेक प्राचीन कलाकारों के नाम और उनके मतों का उल्लेख प्राप्त होता है परंतु वर्तमान में इनमें से कोई भी टीका उपलब्ध नहीं है यहां पर उद्भट भट्ट लोल्लट शंकुक भट्ट नायक राहुल भट्ट मंत्र कीर्ति धरहर स्वार्थी और मात्री गुप्त के टिकाऊ का वर्णन मिलता है
आचार्य भामह
आचार्य भामह का समय छठी शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है जिसके साक्ष्य में यह तर्क दिया जाता है कि उन्होंने अपने काव्यालंकार के पंचम परिच्छेद में न्याय निर्णय का वर्णन करते हुए बहुत धराचार्य दिन नाग के प्रत्यक्षण कल्पना पूर्ण हम इस प्रत्यक्ष लक्षण को उद्धृत किया है दिंनाक दिन नाग का समय 500 ईसवी के आसपास माना जाता है दिंनाक के बाद उनके व्याख्याकार आचार्य धर्मकीर्ति का समय 620 ईसवी के लगभग माना जाता है धर्मकीर्ति ने दिन नाग के इस लक्षण में थोड़ा सा संशोधन करके कल्पना बोर्ड महानतम प्रत्यक्षण निर्विकल्प कम यह प्रत्यक्ष लक्षण किया है इसमें मात्र अब हम तुम पर जोड़ दिया गया है किंतु भामती ग्रंथ में दिए गए प्रत्यक्ष लक्षण में और अंतिम पद नहीं है इससे यह सिद्ध होता है कि 52 दिन नाग के परवर्ती और धर्मकीर्ति के पूर्ववर्ती रहे होंगे आनंद वर्धन ने भी आ म का समय बाणभट्ट के पूर्ववर्ती बताया है बाणभट्ट का समय सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है इस दिशा में भामह का समय पांचवी छठी शताब्दी के मध्य में निर्धारित किया जा सकता है

Share:

अभिनवगुप्त


भारत में जब-जब कश्मीर की चर्चा की जाएगी परम माहेश्वर सेव आचार्य अभिनवगुप्त याद आते रहेंगे अभिनव गुप्त की साहित्यिक एवं दार्शनिक विचारों से संबंधित ग्रंथ बहुतायत में प्राप्त होते हैं कश्मीरी ब्राह्मण होते हुए भी उनके पूर्वजों का संबंध उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर कन्नौज से रहा है वहीं से इनके पूर्वज अतिरिक्त को तत्कालीन कश्मीर नरेश ने ललितादित्य ने ससम्मान कश्मीर लाया था अपने तंत्र ग्रंथ में इसका सविस्तार उन्होंने वर्णन किया है इन्होंने प्रत्यभिज्ञा दर्शन और त्रिक संप्रदाय की स्थापना की थी कोई ग्राम और त्रिक संप्रदाय पर इनका प्रभाव देखा जाता है मूल रूप से अभिनवगुप्त दार्शनिक थे परंतु साहित्य शास्त्र पर भी इनका असाधारण अधिकार था यह कन्नौज के राजा यशोवर्मन के अंतर्वेदी नामक क्षेत्र में रहते थे ।
10वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस परिवार में 12 गुप्त पैदा हुए उनके पुत्र चुके थे उनका दूसरा नाम नरसिंह हो गुप्त था अभिनवगुप्त का समय 1012 ईस्वी निर्धारित किया गया है
इनका घर श्रीनगर में बितास्ता के तट पर था त्रिक विद्यापति तीन ग्रंथ प्राप्त होते हैं तंत्रालोक अभिनव गुप्त की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति तंत्रालोक है यह अनेक प्रकाशकों के द्वारा अनेक खंडों में प्रकाशित किया जा चुका है इसमें कुल तंत्र तथा क्रम तथा प्रत्यभिज्ञा आदि सभी विचारधारा के समस्त पक्षों का विस्तारपूर्वक व्याख्या प्रस्तुत है इसमें कर्मकांड और दर्शन दोनों का व्यवस्थित विवेचन किया गया है शिव दर्शन का यह सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है चंद्रलोक पर जय रखने विवेक नामक टीका लिखी है आज इस पुस्तक पर अनेकों टीकाएं प्राप्त होती है तंत्रसार यह तंत्रालोक की शिक्षाओं का गत्यात्मक सारांश ग्रंथ है माननीय विजय भारती यह परमार्थ विद्या और दर्शन के बहुत सारे रहस्यपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है तथा त्रिक संप्रदाय का अधिग्रहण ग्रंथ है इस पर अभी तक कोई भी टीका उपलब्ध नहीं हो सकी है पर आकृति का विवरण यह एक आगम का ग्रंथ है जिस पर मातृका मालिनी और कश्मीर शैवदर्शन के दूसरे रहस्यपूर्ण और गुण व्यवहारिक सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है शिव दृष्टि या लोचन शिव दृष्टि पर लिखी गई विस्तृत टिका है परंतु यष्टि का अभी उपलब्ध नहीं होती ईश्वर प्रत्यभिज्ञा बीमार सीने परमार्थ सार यह सब दर्शन के बारे में जानने के लिए बहुत ही उपयोगी ग्रंथ है इस पर छह में राज केसीसी योग राजनीति का लिखी है परमार्थ चर्चा इसमें स्वागत को दर्शाया गया है बौद्ध पंचा पंचदशी का इसमें वह कश्मीरी शैव दर्शन पर संक्षिप्त में चर्चा की गई है स्तोत्र क्रम स्तोत्र त्रिक विद्या की प्रशंसा में लिखा गया यह ग्रंथ है भैरव स्तोत्र शिव की दार्शनिक स्तुति की गई है जो कि कश्मीर में बहुत ही प्रसिद्ध है दे हस्त देवता चक्र स्तोत्र अनुभव निवेदन स्तोत्र क्रम के लिए यह ग्रंथ अभियान उपलब्ध है मालिनी तंत्र पर पूर्व पंछी का अनुपलब्ध है अंतरराष्ट्रीय का स्तोत्र गीता अर्थसंग्रह अभिनवगुप्त में भगवत गीता पर गिटार संग्रह नामक गीता भाष्य भी लिखा था जिसकी शिक्षा उन्होंने भारतेंदु राज्य से प्राप्त की थी आचार्य अभिनव ग्रुप ने कुल 41 ग्रंथों की रचना की थी जिसमें से बहुत सारी रचनाएं अब नष्ट हो गई है।

अभिनवगुप्त के विषय में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त होती है अभिनवगुप्त कश्मीर के विद्वान थे फिर भी उनके पूर्वजों का मूल्य स्थान कश्मीर नहीं था अभिनवगुप्त के समय से लगभग 200 वर्ष पहले आठवीं शताब्दी में वह कश्मीर गए थे अभिनवगुप्त के अन्य पूर्वजों का उल्लेख उनके पितामह का मिलता है उनका नाम बड़ा ग्रुप तथा 12 गुप्त के पुत्र नरसिंह गुप्त हुए नरसिंह गुप्त के पुत्र अभिनवगुप्त हुए इस प्रकार अभिनवगुप्त के पिता का नाम नरसिंह गुप्त और माता का नाम विमल कला था अभिनवगुप्त के समकालीन विद्वानों से विद्या अर्जित किया था इनके अलग-अलग शास्त्रों के अलग-अलग गुरु थे जैसे व्याकरण शास्त्र के गुरु थे नरसिंह गुप्त जो इनके पिता थे ध्वनि सिद्धांत के गुरु थे भट्ट इंदू राज ब्रम्हविद्या के गुरु थे भूति राज तथा नाट्यशास्त्र के गुरु भक्त पुत्र थे इस प्रकार अभिनव गुप्ता अनेक शास्त्रों के निष्णात विद्वान थे अलंकार न्याय वैशेषिक वेदांत शेयर तंत्र बाधा वैष्णव आदि शास्त्रों के सिद्धांतों का इन्होने अपने अनेक गुरुओं से अध्ययन किया था अपने ईश्वर प्रत्यभिज्ञा बिगड़ती विमर्श नी में लिखा है कि उन्होंने नाना गुरु प्रभुपाद निपात जात संवत्सरी पूर्व विकास निवेशक श्री आचार्य अभिनवगुप्त के समय अभिनवगुप्त ने अपने कुछ रचनाओं में अपने लेखन का समय दिया है ईश्वर प्रत्यभिज्ञा व्यक्ति विमर्श नी में उनकी रचना का समय 4115 कली वर्ष तथा 1000000 वर्ष अर्थात 1014 ईस्वी दिया गया है भैरव स्तव में इन्होंने इन की रचना का समय 7 10 8 अलौकिक वर्ष 992 से 993 इसमें लिखा है अभिनवगुप्त में ने राजा यह संस्कार के मंत्री के पुत्र करने के लिए मालिनी विजय भारतीय विजय ग्रंथ की रचना की थी यह सोचकर की मृत्यु 948 ईस्वी में हुई थी तंत्र सिद्धांतों को समझने के लिए करण को युवा होना चाहिए
यदि करण का 950 ईसवी में भी हुआ हो तो प्राचीन शिव की विवरण की रचना 900 ईस्वी के लगभग हुई होगी यह महेंद्र ने बृहत्कथा मंजरी और भारत मंजरी में लिखा है कि साहित्य का अध्ययन उन्होंने अभिनवगुप्त से किया था यह महेंद्र ने समय मातृका की रचना 1050 ईस्वी में तथा दशावतार चरित की रचना 1066 इसी में की थी अतः इनकी साहित्य रचना का समय 10320 से 10720 समझा जाना चाहिए अभिनवगुप्त इनसे निकट पूर्व में हुए थे इस दिशा में उनकी साहित्य रचना का समय 900 ईस्वी से 1010 ईस्वी माना जाना चाहिए अभिनवगुप्त की कृतियां आचार्य अभिनवगुप्त ने अपने गुरुओं का अनुसरण करते हुए अनेक साहित्यों का प्रणयन किया तंत्रालोक से लेकर भैरव स्थल जैसे छोटे ग्रंथ को मिलाकर इनकी कुल रचनाओं की संख्या 41 है इनके रचनाओं को चार भागों में बांटा जा सकता है एक काव्यशास्त्रीय कृतियां यद्यपि अभिनवगुप्त ने स्वतंत्र रुप से किसी काव्यशास्त्र ग्रंथ की रचना नहीं की फिर भी इन्होंने काव्यशास्त्र के गति पर महत्वपूर्ण ग्रंथों पत्रिकाएं लिखी है जिनके विवरण निम्नवत हैं एक ध्वन्यालोक लोचन आनंदवर्धन कृषि ध्वन्यालोक पर अभिनवगुप्त की लोचन टीका प्राप्त होती है इसे सहृदय लोक लोचन काव्या लोक लोचन और ध्वन्यालोक लोचन नाम दिया जाता है इसी टीका के कारण साहित्यकार इन्हें लोचन कार नाम से भी पुकारते हैं काव्यशास्त्र के क्षेत्र में इस टीका का अतिशय महत्व है इसमें ध्वनि और रस निष्पत्ति के तथ्यों की विशेष विवेचना की गई है तथा ध्वनि विरोधी मतों का दृढ़तापूर्वक खंडन किया गया है अभिनव गुप्त ने अपने इस टीका में अपने से पूर्ववर्ती टीकाकारों कीमतों को भी उधर किया है किम लोचन बिना लोके भारती चंद्रिका जाती हे देना अभिनव गुप्त वंश लोचन ऑन मिली संविधान ध्वन्यालोक लोचन पर भी एक टीका कॉल के विद्वान उदयोग तुमने लिखी थी जिसे कमोडीटी का नाम से जाना जाता है किंतु इस समय यष्टि का उद्योग पर ही प्राप्त होती है दो अभिनव भारती इष्टिका को भरत के नाट्यशास्त्र पर अभिनव भारती नामक टीका प्राप्त होती है इष्टिका का दूसरा नाम नाक के वेद व्यक्ति भी दिया जाता है नाट्यशास्त्र पर प्राचीन काल में अनेक टीकाएं लिखी गई परंतु आज केवल यही टीका उपलब्ध है नाट्यशास्त्र के विषयों की जानकारी के लिए यह टीका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है इसमें प्राचीन भारत की नाते कला अभिनय संगीत आदि विषयों की जानकारी बहुत ही गहराई से दी हुई है देखा जाए तो अभिनव गुप्त द्वारा नाट्यशास्त्र पर लिखा गया यह एक स्वतंत्र और मौलिक रचना की भांति है परंतु दुर्भाग्य है कि यह टीका पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है 3:00 काव्य कौतुक विवरण इस ग्रंथ के रचनाकार अभिनवगुप्त के गुरु बांटते हैं अभिनवगुप्त ने इस पर विवरण नामक टीका लिखी है आज यह ग्रंथ और टीका दोनों उपलब्ध नहीं होते हैं अभिनव भारती तथा ध्वन्यालोक लोचन में कहीं-कहीं उसके उद्धरण प्राप्त होते हैं दो स्तोत्र आचार्य अभिनवगुप्त ने अनेक स्तोत्र ग्रंथों की रचना की इनमें कुछ तोते बड़े हैं तथा कुछ छोटे हैं भैरव स्तव कर्म स्तोत्र आदि वृहदाकार में है और बुध पंचाशिका आदि छोटे आकार के हैं उनके द्वारा रचित अन्य स्तोत्रों के नाम है देवी स्तोत्र विवरण शिव शक्ति बिना भाव स्तोत्र प्रकरण स्तोत्र इत्यादि 3 तंत्र आचार्य अभिनव गुप्त की कृतियों में एक भाग तंत्रों से संबंधित है इनका तंत्रालोक अत्यंत ही प्रसिद्ध ग्रंथ है मालनी विजय भारती परात ऋषि का विवरण तथा तंत्रालोक सार भी तंत्र ग्रंथ हैं चार प्रत्यभिज्ञा दर्शन आचार्य अभिनवगुप्त ने प्रत्यभिज्ञा दर्शन विवाद वित्त से संबंधित की भी रचना की इस दर्शन पर मूल रूप से कार्यक्रम और व्यक्ति की रचना उत्पल गुप्त ने किया था जोकि अभिनवगुप्त के दादागुरु थे अर्थात अभिनवगुप्त के गुरु लक्ष्मण गुप्त तथा उनके गुरु उत्पल गुप्त थे कार्य का ग्रंथ का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा और व्यक्ति का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा निवृत्ति है इस पर अभिनवगुप्त में विस्तृत टीका लिखी है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा विवर्त यूनिवर्सिटी के नाम से प्राप्त होती है अभिनवगुप्त ने प्रतिज्ञा दर्शन पर दो विमर्श में लिखी है इनमें से एक प्रत्यभिज्ञा विमर्श नी है जिसे लघु वृत्ति भी कहा जाता है तथा दूसरी गाड़ी का वृद्धि पर विमर्शनी प्राप्त होती है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा व्यक्ति विमर्श नी है है इस ग्रंथ के अंत में अभिनव गुप्ता ने लिखा है कि भगवान शिव के उस मार्ग को सरल और सार्वजनिक सुलभ बनाया है जिसे गुरुओं ने निरूपित किया जो इस मार्ग का अनुसरण करता है वह पूर्ण हो कर शिव रूप हो जाता है अभिनवगुप्त का वैशिष्ट्य अभिनवगुप्त के प्रकार पांडित्य को समझने के लिए हमें आचार्य मम्मट को समझना होगा आचार्य मम्मट इनके आचार्य थे जिसे सरस्वती का अवतार कहा जाता है इनकी लोचन टीका संस्कृत क्षेत्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है इन्हें दुनिया लोग के एक-एक आकार के रूप में ही नहीं अपितु ध्वनि संप्रदाय के संस्थापक एवं प्रवर्तक के रुप में देखा जाता है यह आनंदवर्धन के समकालीन थे आचार्य अभिनवगुप्त आलोचना शास्त्र के इतिहास में गौरव में स्थान रखते हैं इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलते हुए भारत में आलोचना विषयक चिंतन प्रादुर्भूत हुआ यह अभिनव गुप्त कश्मीर के सेव आचार्य में अनन्यतम थे तथा प्रत्यभिज्ञा दर्शन के मौलिक आचार्य होने के कारण परम महेश्वर आचार्य पदवी से विभूषित किए जाते हैं

Share:

हिंदू काल गणना


हिंदू काल गणना में कई वर्ष होते हैं जिनमें से मुख्य रूप से दो प्रकार के वर्ष हैं सौर वर्ष और चंद्र वर्ष सौर वर्ष में 365 दिन होते हैं और चांद्र वर्ष में 355 दिन होते हैं सौरवर्ष प्रायः 14 अप्रैल को शुरू होता है भारतीय पर्व त्योहार तथा व्रत चंद्र वर्ष की गणना के अनुसार से संपन्न होते हैं सर संक्रांति या 12 होती हैं जिसमें 2 संक्रांति मुख्य हैं मेष संक्रांति इसे सतुआ संक्रांति भी कहते हैं
भारतीय परंपरा में समय का विभाजन छह प्रकार से किया जाता है । वर्ष, हायन, रितु, मास, पक्ष और दिवस वर्ष पांच प्रकार के होते हैं चांद चंद्र सौर सावन नक्षत्र बार्हस्पत्य चंद्र वर्ष में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होकर अमावस्या तक चैत्र वैशाख दादी 12 महीने तथा 354 दिनों का होता है मलमास होने पर यह चांद्र वर्ष 13 महीनों का होता है सौर वर्ष में मेष वृष आदी 12 राशियां होती है तथा इसमें 365 दिन होते हैं सावन वर्ष में 360दिन होते हैं नाक्षत्र वर्ष में 12 नक्षत्र मास 324 दिन होते हैं बार्हस्पत्य वर्ष में 361 दिन होते हैं संकल्प आदि में चंद्र वर्ष का ही प्रयोग किया जाता है यह दो प्रकार के होते हैं दक्षिण और उत्तर सूर्य की कर्क संक्रांति से छह राशि के भोग से दक्षिणायन तथा मकर संक्रांति से छः राशि के भोग से उत्तरायण होता है प्रीत में रितु में रितु दो प्रकार के होते हैं सौर तथा चंद्र मीन तथा मेष से आरंभ होकर सूर्य की दो राशि भोग करने पर बसंत आदि 64 ऋतु होते हैं चैत्र से लेकर दो 2 महीने का बसंता दी चाहा चांद्र ऋतु होता है मास महीना चार प्रकार के होते हैं चांद और सावन और नक्षत्र शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक या कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक चांद्रमास होता है मलमास दो प्रकार के होते हैं अधिक मास और समाज जिसमें संक्रांति ना हो उसे अधिक मास तथा जिस महीने में दो संक्रांति हो उसे क्षय मास कहते हैं

Share:

भारतीय मास के क्रम से पर्व तथा त्यौहार

हिंदू पर्व तथा व्रत में अंतर होता है पर्व या त्यौहार जहां हर्ष उल्लास और वैभव के साथ मनाया जाता है वही व्रत में संगम पूर्वक उपवास रखते हुए संकल्प पूर्वक कार्य पूर्ण किए जाते हैं व्रत नैमित्तिक कार्य होते हैं इसे सुनिश्चित अवधि के लिए पालन किया जाता है तत्पश्चात इस व्रत का समापन किया जाता है व्रत नितांत व्यक्तिगत होता है जबकि करवा चौथ की एक ऐसा व्रत है जो सामूहिक रुप से मनाया जाता है व्रत किसी विशिष्ट इच्छा पूर्ति के लिए किए जाते हैं व्रत में गंभीरता का भाव अत्यधिक होता है यह जीवन को अनुशासित रखने का माध्यम है व्रत त्यौहार में विभिन्न प्रकार की कहानियां लोकगीत और कलाएं जुड़कर इसे वैभवशाली बनाती रही इनका मुख्य आधार पुराण है जब इन व्रतों में प्रतीकों को समाविष्ट किया जाता है तब यह और भी उल्लास में हो उठता है व्रत में व्रती को देवी गीतों चित्रकारी तथा अन्य क्रिया विधियों के द्वारा व्यस्त रखने की परंपरा जुड़ती चली गई

चैत्र मास होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा संपदा देवी पूजा बुढ़वा मंगल भैया दूज दितीया झूलेलाल जयंती गणेश चतुर्थी शीतला सप्तमी शीतला अष्टमी पापमोचनी एकादशी धनत्रयोदशी वारुणी पर्व अरुंधती व्रत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वासंतिक नवरात्र आरंभ गौरी उत्सव तृतीया गंगा और यमुना षष्ठी स्कंध षष्ठी उधना सप्तमी अशोक अष्टमी राम नवमी कामदा एकादशी में संक्रांति का महोत्सव त्रयोदशी से चतुर्दशी तक महावीर जयंती हनुमत जयंती चैत्र पूर्णिमा वैशाख मास वैशाख स्नान प्रारंभ वैशाख कृष्ण प्रतिपदा कच्छप अवतार
यह पूर्णिमा पहले ही दिन आधी रात तक हो तो पहले ही दिन व्रत करें यदि दूसरे दिन पूर्णिमा आधी रात्रि तक हो तो दूसरे दिन व्रत करें कोजगरा में लक्ष्मी तथा इंद्र का पूजन किया जाता है रात्रि में जागरण करना और जुआ खेलने का विधान है उसमें कमल के आसन पर बैठी लक्ष्मी का ध्यान कर हाथ में अक्षत लेकर अक्षत के ढेर पर लग शिवाय नमः इस मंत्र से लक्ष्मी का आवाहन कर षोडशोपचार पूजा करते हैं पूजा के अनंतर पुष्पांजलि देकर नमस्कार करें 4 दांत वाले हाथी पर हाथ में वज्र लिए सच्ची के प्रति अनेक आभूषणों से अलंकृत इंद्र को ध्यान करना चाहिए नारियल का रस पी कर जल्दी कर जुआ खेलना प्रारंभ करें आधी रात में वरदान देने वाली लक्ष्मी यह देखती है कि कौन जगह हुआ है ऐसा देखकर जो जुआ खेलता है उसे धन देती है नारियल और चुरा देवताओं तथा पितरो को समर्पण कर स्वयं इसका भक्षण करें

संवत्सर आरंभ चैत्र महिने शुक्ल प्रतिपदा को विक्रम संवत का आरंभ होता है अथर्व वेद के पृथ्वी सूक्त के अनुसार पृथ्वी के साथ संवत्सरों का संबंध रहा है ऋतु विज्ञान की कथा संवत्सर महत्वपूर्ण कारक है प्रजापति ब्रह्मा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को सृष्टि की रचना की थी उसी दिन से संवत्सर का आरंभ हुआ ब्रम्हा पुराण के अनुसार देवी-देवताओं ने किसी दिन से सृष्टि के संचालन का सृष्टि कार्यभार संभाला संवत्सर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का साक्षात प्रतिमूर्ति है अतः आज के दिन संवत्सर की स्वर्ण पथ प्रतिमा बनाकर पूजन करने का विधान अथर्ववेद में प्राप्त होता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है ईरान के लोग आज के ही दिन नवरोज त्योहार मनाते हैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्र का आरंभ होता है जिस दिन नवरात्र व्रत का अनुष्ठान समूचे भारत वर्ष में मनाया जाता है वैष्णव लोग रामायण का पाठ तो शास्त्र संप्रदाय के लोग मां दुर्गा की उपासना करते हैं वैदिक परंपरा से ही सभी नागरिक प्रातः स्नान कर गंधक अक्षत पुष्प और जल लेकर संवत्सर का पूजन करते थे हरे भरे सरसों के पीले फूलों के परिधान में लिपटी खेतों पर जाकर किसान पीले सरसों के फूलों का अवलोकन करते हैं तथा गेहूं आदि नई फसल को काट कर घर लाते हैं संवत्सर के पूजन का विधान इस प्रकार है इस दिन नई चौकी अथवा बालू की वेदी पर साफ वस्त्र बिछाकर हल्दी अथवा केसर से रंगे हुए अष्टदल कमल बनाकर उस पर नारियल अथवा संवत्सर ब्रह्मा की स्वर्ण प्रतिमा रखकर ओम ब्रह्मा ने नमः मंत्र से ब्रह्मा का पूजन कर गायत्री मंत्र से हवन करते थे
अरुंधती व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाने वाला अरुंधती व्रत प्रजापति कर्दम ऋषि की पुत्री और महर्षि वशिष्ठ की धर्म पत्नी थी सोभाग्य चाहने वाली महिलाएं उनसे चरित्र की प्रेरणा देती है फलश्रुति है कि इस व्रत को करने से बाल वैधव्य दोष का परिहार होता है यह व्रत चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से शुरु होकर तृतीया को पूर्ण होता है इस व्रत के पूजन का विधान इस प्रकार है किसी नदी अथवा घर में स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है दूसरी अधीन जितिया को नवीन धान्य पर कलश रखकर उसके ऊपर अरुंधति वशिष्ठ और ध्रुव की तीन मूर्तियां स्थापित की जाती है गणपति के पूजन के बाद शिव पार्वती का पूजन किया जाता है तृतीया को इस व्रत की समाप्ति होती है इस व्रत की कथा इस प्रकार है प्राचीन काल में किसी विद्वान ब्राम्हण की कन्या छोटी उम्र में विधवा हो गई एक दिन यमुना नदी में स्नान करके वह शिव पार्वती का पूजन कर रही थी कि स्वयं आशुतोष उस रास्ते आकाश मार्ग से निकले पार्वती ने शंकर से उसके बाल वैराग्य का कारण पूछा शिव ने कहा देवी पहले जन्म में यह लड़की पुरुष थी और ब्राम्हण परिवार में इसका जन्म हुआ था परंतु दूसरी स्त्री में आसक्ति रखने के कारण इसे नारी का जन्म मिला अपनी विवाहिता पत्नी को दुखी रखने हेतु वैधव्य का दुख उठाना पड़ रहा है पार्वती ने पूछा प्रभु इस पाप का प्रायश्चित किस विधि से हो सकती है शंकर ने कहा आज से बहुत पहले जन्मी हुई सती अरुंधती के पावन चरित्र को स्मरण करती हुई यह बालिका यदि अपना शरीर त्याग दे तो इसे अगले जन्म में सदाचार प्राप्त करने की बुद्धि प्राप्त होगी और इसके बाल वैधव्य का परिहार हो जाएगा देवी पार्वती अवसर पाकर उस बालिका के सामने पहुंची इस व्रत के दोष और गुण को समझाती देवी अरुंधति के चरित्र पतिव्रत धर्म का महत्व और अपने जीवन को सुखी बनाने के मर्म को समझाया पार्वती के कथनानुसार बालिका ने देवी अरुंधति का स्मरण करते हुए शरीर क्या किया जिसके फलस्वरूप उसे दूसरे जन्म में सुखी गृहिणी जीवन प्राप्त हुआ।


आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है उसी दिन से कार्तिक के नियमों का प्रारंभ हो जाता है इसी दिन कोजगरा का त्यौहार भी धूमधाम से मनाया जाता है चंद्रमा की रोशनी में 108 बार सुई में धागा पिरोने से आंख की ज्योति बढ़ती है सिडको रात भर उस में रखते हैं तथा इसका प्रसाद का तत्काल सबको दिया जाता है कहा जाता है कि इस दिन रात्रि में चंद्रमा अमृत की वर्षा करते हैं कोजगरा के अवसर पर प्रदोष में लक्ष्मी के पूजन का विधान है इस दिन सभी घरों और आवास के समय मार्गों को साफ-सुथरा करना चाहिए शरीर मैं चंदन आदि का लेप लगाकर शरीर को सुगंधित करना चाहिए स्त्रियों बालकों वृद्धों तथा मूर्खों को छोड़कर और लोगों को दिन में भोजन नहीं करना चाहिए प्रदोष के समय द्वार के ऊपर भित्ति पर भव्य वाहन पूर्णेंदु भाइयों के साथ रूद्र स्कंद नंदीश्वर मुनि सूरज सूरभी निकुंभ लक्ष्मी इंद्र तथा कुबेर की पूजा करनी चाहिए जिनके पास भैरव व वरुण की पूजा करें जिनके पास हाथी हो वह विनायक की पूजा करें जिनके पास घोड़े हो वह दयमंती की अरे मंत्र की पूजा करें जिनके पास गाय हो सुरभि की पूजा करें पूजा की विधि इस प्रकार है दैनिक क्रिया संपन्न कर व्रत किया हुआ व्यक्ति स्वच्छ आसन पर बैठकर गणपति आदि देवता सहित विष्णु की पूजा कर संकल्प करें द्वार को जल से अभिसिंचित कर गंध अक्षत से द्वारा भित्ति पता है नमः कसकर वास्तु की पूजा करें इस प्रकार पूजा विधि संपन्न कर लक्ष्मी की पूजा करें पूजा समाप्त होने के उपरांत प्रसाद ग्रहण कर भोजन करें तथा बंधुओं के साथ भोजन करें इसी दिन ऑफलाइन शाखा वाली रोहा सी यूज़ कर्म करते हैं पूर्णिमा की रात्रि में आकषक लीगा अक्षय क्रिडा या परसों का से खेल खेला जाता है स्कंद पुराण के अनुसार कोजगरा व्रत को सर्वश्रेष्ठ व्रत माना गया है आश्विन मास की पूर्णिमा को कौमुदी यह कहा जाता है

Share:

Astronomy in Valmiki Ramayana


खगोलविज्ञानं वेदस्य नेत्रमुक्तम् महर्षिणा। सृष्टेः व्यवहारस्य  निर्धारणं कालेनैव भवति।  कालस्य ज्ञानं च ग्रहगति द्वारा निश्चीयते। अत: प्राचीनकालतः अद्यपर्यन्तं  खगोलविज्ञानं वेदांगस्यावयवत्वेन परिगण्यते। यजुर्वेदेपि आयं गोः पृश्निर क्रमीदसवन्मातारं पुर: । इति मन्त्रे स्पष्टतया सूर्यं परितः पृथ्वियाः  भ्रमणं सिद्धयति। खगोलविज्ञाने ब्रह्माण्डे स्थितानां विभिन्नपिण्डानां अध्ययनं क्रियते। प्रागैतिहासिककालादारभ्य अस्माकं पूर्वजाः  सूर्यं, चन्द्रं  अन्यखगोलीय पिण्डान् दृष्टवन्तः।
राजनैतिकरूपेण तु श्रीरामस्य अस्तित्वनिर्धारणं नैव सम्भवम् , परन्तु वाल्मीकिरामायणे यत् खगोलीयं वर्णनं प्रप्यते तदाधारेण सर्वं स्पष्टतया ज्ञातुं शक्यते।
महर्षि- वाल्मीकिना  रचिते श्लोके नभमंडलस्य विन्यासं सरलं स्पष्टं च  अस्ति। अनेनैव एतदपि ज्ञायते यत् समकालीने समाजे  खगोलविज्ञानं उन्नततमं आसीत्। अस्योदाहरणं पश्यन्तु विज्ञाः।
श्रीरामस्य जन्म - रामायणस्य बाल-काण्डेः  उनविंशतितमे सर्गस्य , अष्टमे नवमे च श्लोके  स्पष्टरूपेण लिखितमस्ति यत् श्रीरामस्य जन्म चैत्र मासस्य नवम्यां तिथौ अभवत्। यस्मिन्  सूर्यः मेषस्य गृहे , शनिः तुलायां , बृहस्पतिः कर्के , शुक्रः शनौ , स्थाने आसीत् ।


Share:

Useful links for learn Sanskrit


SANSKRIT SITES
               https://sanskritbhasi.blogspot.com/     
               
              www.sanskritsounds.com

  https://soundcloud.com/search?q=jagdanand%20jha

                www.sanskritstudies.org

                https://www.youtube.com/user/jagdanand73

                www.sanskrittranslations.com

                www.sanskritworld.in

                www.sanskrt.org

                www.sanslanommer.com

                www.sanskritsarjana.in

Share:

English words made from Sanskrit

संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी कही जाती है। आपके लिए यहाँ संस्कृत के शब्द दिये जा रहे हैं। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार संस्कृत का शब्द परिवर्तित होकर अंग्रेजी में प्रयुक्त हो रहे हैं। महाभाष्यकार पतंजलि ने असंख्य शब्दों के प्रयोग विषय के बारे में लिखा है कि संस्कृत के कुछ शब्द दूसरे देशों में प्रयुक्त किये जाते हैं। देशान्तरे वा। उन्हीं के शब्दों में यदि हम संस्कृत के एक भी शब्द को ठीक से समझ जायें और उसका ठीक से प्रयोग करने लगें तो वह कामधेनु के समान होता है। मनु से ही सृष्टि का आरम्भ हुआ। हमलोग मनु की संतति हैं अतः हमें मानव कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ही मैन (MAN) कहते हैं। इसी प्रकार जनवरी से गणना करने पर अंग्रेजी आठवां महीना अगस्त है। अगस्त में अष्ट, नवम्बर में नव, दिसम्बर में दश शब्द आते हैं। इस कैलेंडर में पहले 10 माह ही होते थे। अंग्रेजी के दिनांक, सप्ताह आदि सभी समय के मानक शब्द संस्कृत से बने हैं।

मनु = मैन
पितर = फादर
मातर = मदर
भ्रातर = ब्रदर
स्वसा = सिस्टर
दुहितर = डाटर
सुनु = सन
विधवा = विडव्
अहम् = आई एम
मूष =  माउस
ऋत = राइट
स्वेद = स्वेट (पसीना )
अंतर =अंडर (नीचे ,भीतर )
द्यौपितर = जुपिटर (आकाश , बृहष्पति)
पशुचर =पाश्चर (चरवाहा )
दशमलव =  डेसिमल
ज्यामिति = ज्योमेट्री
पथ =पाथ (रास्ता )
नाम = नेम
वमन=vomity=उल्टी करना
द्वार =   डोर (door)
हृत =   हार्ट (heart)
द्वि =   two
त्रि =   three
पञ्च =   penta =   five
सप्त =   hept =   seven
अष्ट =   oct =   eight
नव =   non =   nine
दश =   deca =   ten
दन्त =   dent
उष्ट्र =   ostrich
गौ =   cow
गम् =   go
स्था =   stay
अक्ष-  axis
सप्त अम्बर- september
अष्ट अम्बर- october
नबं अम्बर- november
दशं अम्बर- december
Share:

Popular Posts

Powered by Blogger.

Search This Blog

Blog Archive

लेख सूची

Labels

Recent Posts

Unordered List

  • Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit.
  • Aliquam tincidunt mauris eu risus.
  • Vestibulum auctor dapibus neque.

Label Cloud

Biology (1) Physics (1)

Sample Text

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.

Pages

संस्कृतसहायता केन्द्रम्

Need our help to संस्कृतसहायता केन्द्रम्/span> or व्याकरण this blogger template? Contact me with details about the theme customization you need.