एक प्राचीन
शास्त्र है जिसे काव्यालंकार अलंकार शास्त्र साहित्यशास्त्र और क्रिया कल्प के नाम
से अभिहित किया जाता है वैदिक ऋचा में काव्य शास्त्र के उत्साह दिखाई पड़ते हैं
काव्यशास्त्र का क्रमबद्ध सुसंगठित और सर्वांगपूर्ण समारंभ भरत मुनि के नाट्य
शास्त्र से होता है भरतमुनि ने समस्त काव्य घटकों को अपने शास्त्र में स्थान दिया
और उसकी विवेचना में नारी दृष्टि प्रधान हो गई यही कारण था कि ना के शास्त्रीय
परंपरा से अलग काव्यशास्त्रीय चिंतन का सूत्रपात हुआ उसके अनंतर भामह दंडी बामन
आनंदवर्धन कुंतल जैसे मनीषी आचार्यों की श्रृंखला अपने विचारों से क्रमशः
काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों को परिपुष्ट करते रहे व्यक्तिगत काव्य चिंतन और मौलिक
काव्य दृष्टियों के कारण परवर्ती काल में अनेक काव्यशास्त्रीय संप्रदायों का उद्भव
हुआ भरत से भामा तक जो काव्यशास्त्र अपनी सेवा वस्था में था मामा से आनंदवर्धन तक
आते-आते तरुणाई को प्राप्त हुआ 600 विक्रम संवत
भामा से 800 विक्रम संवत आनंदवर्धन का काल साहित्य शास्त्रीय
संपन्नता का काल माना जाता है इन 200 वर्षों में ही विभिन्न
संप्रदायों के मौलिक ग्रंथों का निर्माण हुआ अलंकार रीति रस ध्वनि इन चार
संप्रदायों का उद्भव इन हिंदी 200 वर्षों में हुआ विवेचन की
सुविधा को दृष्टि में रखते हुए तथा ध्वनि सिद्धांत को केंद्र में रखकर
काव्यशास्त्रीय परंपरा को तीन भागों में बांटा जा सकता है एक पूर्व ध्वनि काल
अज्ञात से आनंदवर्धन तक 800 विक्रम संवत ध्वनि काल आनंदवर्धन
से मम्मट तक 800 से 1050 विक्रम संवत
तक उत्तर ध्वनि काल मम्मट से जगन्नाथ तक 1050 से 1750 विक्रम तक पूर्व ध्वनि काल अग्नि पुराण को सम्मिलित करते हुए यह काल भरत
मुनि के नाट्य शास्त्र से आरंभ होता है और इस काल के अंतिम आचार्य रुद्रट थे था
तथापि पूर्व ध्वनि काल के साहित्यकार में अलंकार संप्रदाय का प्रभुत्व था इस काल
के गणमान्य आचार्यों में भामा दंडी उद्भट वामन वडोदरा की दृष्टी काव्य के बहिरंग
विवेचन में लगी रही इसीलिए रस अथवा ध्वनि को यह आचार्य विवेचित नहीं कर सके भामा
दंडी उद्भट रुद्रट सभी की दृष्टि ने काव्य में अलंकार की प्रधानता को स्वीकार किया
तथा रस को भी अगर सवाद अलंकार के रूप में इसी में समाहित किया दंडी ने तो काव्य को
शोभा परख समस्त धर्म अलंकार शब्द से वाक्य है कह कर अपना अंतिम निष्कर्ष दे दिया
आचार्य वामन ने सिमी क्षेत्रों में रहते हुए भी अपनी मौलिकता का परिचय दिया और
अलंकार को स्वीकार किया परंतु उन्होंने काव्य अलंकार को ग्रहण किया लेकिन स्पष्टता
कहा कि सुंदरी ही अलंकार है और सुंदरी का सृजन गुण करते हैं उपमा दी अलंकार उसकी
शोभा में वृद्धि करते हैं काव्यात्मक की चर्चा के प्रसंग में उन्होंने इसी सत्य का
उद्घाटन किया वामन के अनुसार काव्य की आत्मा रीति है रीति विशिष्ट पद संघटना है
अतः अस्पष्टता वामन ने भामा दंडी रुद्रट की अपेक्षा अलंकार को एक व्यापक भूमि
प्रदान की भामा और मौत बामन के ने दो संप्रदायों के प्रवर्तक दृष्टि को जन्म दिया
भामह की प्रतिष्ठा अलंकार संप्रदाय के प्रवर्तक के रूप में हुई और रमन रीति
संप्रदाय के जन्मदाता माने जाते हैं अलंकार संप्रदाय की अपेक्षा रीति संप्रदाय को
अधिक अंतर्मुखी माना जाता है बामन उस अंतरतम को नहीं प्राप्त कर सकें जिसे
आनंदवर्धन ने प्राप्त किया क्योंकि बामन ने गुण को ही प्रधानता देकर विराम ले लिया
वस्तुतः वामन ने गुणों की आश्रय की दृष्टि से विचार नहीं किया इसीलिए वह अपनी
ध्वन्यात्मक अनुभूति को अभिव्यक्ति नहीं दे सके उसको ही साहित्य के प्रमुख तुम
तत्व आत्मा के रुप में घोषित करने वाले आनंदवर्धन के लिए वामन ने ही इस प्रकार की
पृष्ठभूमि का निर्माण किया
आचार्य
भरत
संस्कृत
काव्यशास्त्र के प्राचीन आचार्य में आचार्य भारत का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया
जाता है इनके द्वारा लिखित काव्य शास्त्र ग्रंथ नाट्यशास्त्र प्राचीनतम उपलब्ध
कृतियों में से एक है यह कृति काव्यशास्त्र विषयक विश्वकोश है काव्य के लक्षण
ग्रंथों में पहला स्थान नाट्यशास्त्र को प्राप्त होता है काव्यमीमांसा में राजशेखर
ने भरत मुनि के साथ-साथ सहस्राक्ष सुवर्णा नाम प्रचेता जन स्वास्थ्य पराशर इत्यादि
अनेक साहित्य आचार्यों के नाम का उल्लेख किया है भरत ने भी नाट्यशास्त्र में
नंदीकेश्वर का उल्लेख किया है किंतु इनमें से किसी भी आचार्य की कृति आज उपलब्ध
नहीं है अतः भरत विरचित नाट्यशास्त्र ही काव्यशास्त्र का सर्व प्राचीन तथा प्रमुख
ग्रंथ है आचार्य भारत को भारतीय आलोचकों के साथ-साथ पाश्चात्य आलोचकों ने भी मुक्त
कंठ से प्रशंसा की नाट्यशास्त्र का लक्ष्य नाटक की रचना तथा अभिनय है फिर भी इसमें
काव्यशास्त्र के समस्त रोगों का सर्वांगीण एवं सूक्ष्म विवेचन किया गया है आचार्य
भरत ने सर्वप्रथम यह प्रतिपादित किया की काव्य का प्रमुख तत्व रस है और यह विभाव
अनुभाव और व्यभिचारी भावों से निष्पन्न होता है बाद के आचार्यों ने ना कि शास्त्र
को आधार बनाकर काव्यशास्त्रीय ग्रंथों की रचना की भारत और उनका काल
नाट्यशास्त्र
पर अब तक हुए पर्याप्त अनुसंधान के बाद भी इस ग्रंथ के रचना का समय ज्ञात नहीं हो
सकता है परंतु इतना अज्ञात है कि इसकी रचना भाष और कालिदास के पहले हो चुकी थी
क्योंकि इन काव्य कारों की रचना में इस ग्रंथ की जानकारी उपलब्ध होती है युधिष्ठिर
मीमांसक ने भरत मुनि का समय 500 ईसवी पूर्व
से 1000 ईसवी तक के बीच में माना है हर प्रसाद शास्त्री ने
भी भरतमुनि को 2000 ईसवी पूर्व स्वीकार किया है डॉक्टर किट
का मानना है कि वह 300 ईसवी के लगभग रहे होंगे मैकडोनाल्ड 600 ईसवी और इसके 800 ईसवी में मानते हैं परंतु भारतीय
परंपरा के अनुसार आचार्य भारत का समय वैदिक काल के बाद तथा पुराण काल के पहले माना
जाता है इससे यह सिद्ध होता है कि ना के शास्त्र की रचना कालिदास से पहले हो चुकी
थी कालिदास का समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी है इसलिए भारत को ईसा पूर्व दुखी
शताब्दी या इसके पूर्व का माना जाना चाहिए ना कि शास्त्र में कुल 36 अध्याय हैं इस पर इस में जाति की उत्पत्ति नाटक के लक्षण स्वरूप नाट्य
मंडप उनके भेद परीक्षा गृहों की रचना परीक्षा भवन जवानी का रंग देवता की पूजा
तांडव नृत्य की उत्पत्ति तथा इसके उपकरण पूर्वरंग नांदी प्रस्तावना रस का स्थाई
भाव अनुभाव विभाग तथा व्यभिचारी भाव आंगिक वाचिक साथी तथा आचार्य यह चालू अभिनय
हस्त अभिनय शरीर अभिनय अभिनय की गति धन और विज्ञान का प्रदर्शन व्यायाम स्त्रियों
द्वारा पुरस्कार तथा पुरुष द्वारा स्त्रियों का अभिनय पांचाली अवंती दाक्षिणात्य
और मागधी इंचार्ज प्रवृतियों का विवेचन छंदों के भेद अलंकारों के स्वरूप तथा इसके
भेद भाषा का विधान किस पात्र को संस्कृत में बोलना है और किस पात्र को प्राकृत में
सात स्वर उपरूपक रूपक तथा उसके दसवीं चित्र विनय देवी और आप मानसी सिद्धियों का वर्णन
चार प्रकार के बाद के सात प्रकार के स्वरूप कुर्तियों और जातियों का वर्णन आरोही
अवरोही स्थाई एवं संचार विभाग का वर्णन मीणा की विधि बांसुरी के स्वर ताल और लय का
भेद गायक तथा वादक की योग्यता संगीत के आचार्य तथा शिष्य की योग्यता वादियों का
विवेचन मर्दानगी प्रणाम दर्द दूर तथा अवनद्ध वाद्य चमरा मरे हुए भाग्य का वर्णन
अंतापुर की सरकार और राज्य सेविकाओं के गुण सूत्रधार पहाड़ी पार्श्विक नॉट अ कार
विद रेट नायिका आदि के गुण विधि पात्रों की भूमिका नाक की भूमिका अवतरण हड्डियों
के नाम उनके द्वारा किए गए प्रश्न नेट बंद क्यों की उत्पत्ति का इतिहास और
नाट्यशास्त्र का वर्णन विवेचित है
अंतापुर की
सरकार और राज्य सेविकाओं के गुण सूत्रधार पहाड़ी पार्श्विक नाटककार पीट-पीट नायिका
आदि के गुण विधि पात्रों की भूमिका नाक की भूमिका अवतरण हड्डियों के नाम उनके
द्वारा किए गए प्रश्न नट बंधुओं की उत्पत्ति का इतिहास और नाट्यशास्त्र का वर्णन
विवेचित है नाट्यशास्त्र की टीका हे नाट्यशास्त्र लोकप्रिय रचनाओं में से एक है
अतः इस पर अनेक दिखाएं लिखी गई परंतु अभी केवल एक ही थी का उपलब्ध होता है वह है
अभिनवगुप्त कृत अभिनव भारती की का इसे नॉन वेज विभूति नाम भी दिया गया है
अभिनवगुप्त की टीका में अनेक प्राचीन कलाकारों के नाम और उनके मतों का उल्लेख
प्राप्त होता है परंतु वर्तमान में इनमें से कोई भी टीका उपलब्ध नहीं है यहां पर
उद्भट भट्ट लोल्लट शंकुक भट्ट नायक राहुल भट्ट मंत्र कीर्ति धरहर स्वार्थी और मात्री
गुप्त के टिकाऊ का वर्णन मिलता है
आचार्य
भामह
आचार्य
भामह का समय छठी शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है जिसके साक्ष्य में यह तर्क
दिया जाता है कि उन्होंने अपने काव्यालंकार के पंचम परिच्छेद में न्याय निर्णय का
वर्णन करते हुए बहुत धराचार्य दिन नाग के प्रत्यक्षण कल्पना पूर्ण हम इस प्रत्यक्ष
लक्षण को उद्धृत किया है दिंनाक दिन नाग का समय 500 ईसवी के आसपास माना जाता है दिंनाक के बाद उनके व्याख्याकार आचार्य
धर्मकीर्ति का समय 620 ईसवी के लगभग माना जाता है धर्मकीर्ति
ने दिन नाग के इस लक्षण में थोड़ा सा संशोधन करके कल्पना बोर्ड महानतम प्रत्यक्षण
निर्विकल्प कम यह प्रत्यक्ष लक्षण किया है इसमें मात्र अब हम तुम पर जोड़ दिया गया
है किंतु भामती ग्रंथ में दिए गए प्रत्यक्ष लक्षण में और अंतिम पद नहीं है इससे यह
सिद्ध होता है कि 52 दिन नाग के परवर्ती और धर्मकीर्ति के
पूर्ववर्ती रहे होंगे आनंद वर्धन ने भी आ म का समय बाणभट्ट के पूर्ववर्ती बताया है
बाणभट्ट का समय सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है इस दिशा में भामह का समय पांचवी
छठी शताब्दी के मध्य में निर्धारित किया जा सकता है
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