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अभिनवगुप्त


भारत में जब-जब कश्मीर की चर्चा की जाएगी परम माहेश्वर सेव आचार्य अभिनवगुप्त याद आते रहेंगे अभिनव गुप्त की साहित्यिक एवं दार्शनिक विचारों से संबंधित ग्रंथ बहुतायत में प्राप्त होते हैं कश्मीरी ब्राह्मण होते हुए भी उनके पूर्वजों का संबंध उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर कन्नौज से रहा है वहीं से इनके पूर्वज अतिरिक्त को तत्कालीन कश्मीर नरेश ने ललितादित्य ने ससम्मान कश्मीर लाया था अपने तंत्र ग्रंथ में इसका सविस्तार उन्होंने वर्णन किया है इन्होंने प्रत्यभिज्ञा दर्शन और त्रिक संप्रदाय की स्थापना की थी कोई ग्राम और त्रिक संप्रदाय पर इनका प्रभाव देखा जाता है मूल रूप से अभिनवगुप्त दार्शनिक थे परंतु साहित्य शास्त्र पर भी इनका असाधारण अधिकार था यह कन्नौज के राजा यशोवर्मन के अंतर्वेदी नामक क्षेत्र में रहते थे ।
10वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस परिवार में 12 गुप्त पैदा हुए उनके पुत्र चुके थे उनका दूसरा नाम नरसिंह हो गुप्त था अभिनवगुप्त का समय 1012 ईस्वी निर्धारित किया गया है
इनका घर श्रीनगर में बितास्ता के तट पर था त्रिक विद्यापति तीन ग्रंथ प्राप्त होते हैं तंत्रालोक अभिनव गुप्त की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति तंत्रालोक है यह अनेक प्रकाशकों के द्वारा अनेक खंडों में प्रकाशित किया जा चुका है इसमें कुल तंत्र तथा क्रम तथा प्रत्यभिज्ञा आदि सभी विचारधारा के समस्त पक्षों का विस्तारपूर्वक व्याख्या प्रस्तुत है इसमें कर्मकांड और दर्शन दोनों का व्यवस्थित विवेचन किया गया है शिव दर्शन का यह सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है चंद्रलोक पर जय रखने विवेक नामक टीका लिखी है आज इस पुस्तक पर अनेकों टीकाएं प्राप्त होती है तंत्रसार यह तंत्रालोक की शिक्षाओं का गत्यात्मक सारांश ग्रंथ है माननीय विजय भारती यह परमार्थ विद्या और दर्शन के बहुत सारे रहस्यपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है तथा त्रिक संप्रदाय का अधिग्रहण ग्रंथ है इस पर अभी तक कोई भी टीका उपलब्ध नहीं हो सकी है पर आकृति का विवरण यह एक आगम का ग्रंथ है जिस पर मातृका मालिनी और कश्मीर शैवदर्शन के दूसरे रहस्यपूर्ण और गुण व्यवहारिक सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है शिव दृष्टि या लोचन शिव दृष्टि पर लिखी गई विस्तृत टिका है परंतु यष्टि का अभी उपलब्ध नहीं होती ईश्वर प्रत्यभिज्ञा बीमार सीने परमार्थ सार यह सब दर्शन के बारे में जानने के लिए बहुत ही उपयोगी ग्रंथ है इस पर छह में राज केसीसी योग राजनीति का लिखी है परमार्थ चर्चा इसमें स्वागत को दर्शाया गया है बौद्ध पंचा पंचदशी का इसमें वह कश्मीरी शैव दर्शन पर संक्षिप्त में चर्चा की गई है स्तोत्र क्रम स्तोत्र त्रिक विद्या की प्रशंसा में लिखा गया यह ग्रंथ है भैरव स्तोत्र शिव की दार्शनिक स्तुति की गई है जो कि कश्मीर में बहुत ही प्रसिद्ध है दे हस्त देवता चक्र स्तोत्र अनुभव निवेदन स्तोत्र क्रम के लिए यह ग्रंथ अभियान उपलब्ध है मालिनी तंत्र पर पूर्व पंछी का अनुपलब्ध है अंतरराष्ट्रीय का स्तोत्र गीता अर्थसंग्रह अभिनवगुप्त में भगवत गीता पर गिटार संग्रह नामक गीता भाष्य भी लिखा था जिसकी शिक्षा उन्होंने भारतेंदु राज्य से प्राप्त की थी आचार्य अभिनव ग्रुप ने कुल 41 ग्रंथों की रचना की थी जिसमें से बहुत सारी रचनाएं अब नष्ट हो गई है।

अभिनवगुप्त के विषय में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त होती है अभिनवगुप्त कश्मीर के विद्वान थे फिर भी उनके पूर्वजों का मूल्य स्थान कश्मीर नहीं था अभिनवगुप्त के समय से लगभग 200 वर्ष पहले आठवीं शताब्दी में वह कश्मीर गए थे अभिनवगुप्त के अन्य पूर्वजों का उल्लेख उनके पितामह का मिलता है उनका नाम बड़ा ग्रुप तथा 12 गुप्त के पुत्र नरसिंह गुप्त हुए नरसिंह गुप्त के पुत्र अभिनवगुप्त हुए इस प्रकार अभिनवगुप्त के पिता का नाम नरसिंह गुप्त और माता का नाम विमल कला था अभिनवगुप्त के समकालीन विद्वानों से विद्या अर्जित किया था इनके अलग-अलग शास्त्रों के अलग-अलग गुरु थे जैसे व्याकरण शास्त्र के गुरु थे नरसिंह गुप्त जो इनके पिता थे ध्वनि सिद्धांत के गुरु थे भट्ट इंदू राज ब्रम्हविद्या के गुरु थे भूति राज तथा नाट्यशास्त्र के गुरु भक्त पुत्र थे इस प्रकार अभिनव गुप्ता अनेक शास्त्रों के निष्णात विद्वान थे अलंकार न्याय वैशेषिक वेदांत शेयर तंत्र बाधा वैष्णव आदि शास्त्रों के सिद्धांतों का इन्होने अपने अनेक गुरुओं से अध्ययन किया था अपने ईश्वर प्रत्यभिज्ञा बिगड़ती विमर्श नी में लिखा है कि उन्होंने नाना गुरु प्रभुपाद निपात जात संवत्सरी पूर्व विकास निवेशक श्री आचार्य अभिनवगुप्त के समय अभिनवगुप्त ने अपने कुछ रचनाओं में अपने लेखन का समय दिया है ईश्वर प्रत्यभिज्ञा व्यक्ति विमर्श नी में उनकी रचना का समय 4115 कली वर्ष तथा 1000000 वर्ष अर्थात 1014 ईस्वी दिया गया है भैरव स्तव में इन्होंने इन की रचना का समय 7 10 8 अलौकिक वर्ष 992 से 993 इसमें लिखा है अभिनवगुप्त में ने राजा यह संस्कार के मंत्री के पुत्र करने के लिए मालिनी विजय भारतीय विजय ग्रंथ की रचना की थी यह सोचकर की मृत्यु 948 ईस्वी में हुई थी तंत्र सिद्धांतों को समझने के लिए करण को युवा होना चाहिए
यदि करण का 950 ईसवी में भी हुआ हो तो प्राचीन शिव की विवरण की रचना 900 ईस्वी के लगभग हुई होगी यह महेंद्र ने बृहत्कथा मंजरी और भारत मंजरी में लिखा है कि साहित्य का अध्ययन उन्होंने अभिनवगुप्त से किया था यह महेंद्र ने समय मातृका की रचना 1050 ईस्वी में तथा दशावतार चरित की रचना 1066 इसी में की थी अतः इनकी साहित्य रचना का समय 10320 से 10720 समझा जाना चाहिए अभिनवगुप्त इनसे निकट पूर्व में हुए थे इस दिशा में उनकी साहित्य रचना का समय 900 ईस्वी से 1010 ईस्वी माना जाना चाहिए अभिनवगुप्त की कृतियां आचार्य अभिनवगुप्त ने अपने गुरुओं का अनुसरण करते हुए अनेक साहित्यों का प्रणयन किया तंत्रालोक से लेकर भैरव स्थल जैसे छोटे ग्रंथ को मिलाकर इनकी कुल रचनाओं की संख्या 41 है इनके रचनाओं को चार भागों में बांटा जा सकता है एक काव्यशास्त्रीय कृतियां यद्यपि अभिनवगुप्त ने स्वतंत्र रुप से किसी काव्यशास्त्र ग्रंथ की रचना नहीं की फिर भी इन्होंने काव्यशास्त्र के गति पर महत्वपूर्ण ग्रंथों पत्रिकाएं लिखी है जिनके विवरण निम्नवत हैं एक ध्वन्यालोक लोचन आनंदवर्धन कृषि ध्वन्यालोक पर अभिनवगुप्त की लोचन टीका प्राप्त होती है इसे सहृदय लोक लोचन काव्या लोक लोचन और ध्वन्यालोक लोचन नाम दिया जाता है इसी टीका के कारण साहित्यकार इन्हें लोचन कार नाम से भी पुकारते हैं काव्यशास्त्र के क्षेत्र में इस टीका का अतिशय महत्व है इसमें ध्वनि और रस निष्पत्ति के तथ्यों की विशेष विवेचना की गई है तथा ध्वनि विरोधी मतों का दृढ़तापूर्वक खंडन किया गया है अभिनव गुप्त ने अपने इस टीका में अपने से पूर्ववर्ती टीकाकारों कीमतों को भी उधर किया है किम लोचन बिना लोके भारती चंद्रिका जाती हे देना अभिनव गुप्त वंश लोचन ऑन मिली संविधान ध्वन्यालोक लोचन पर भी एक टीका कॉल के विद्वान उदयोग तुमने लिखी थी जिसे कमोडीटी का नाम से जाना जाता है किंतु इस समय यष्टि का उद्योग पर ही प्राप्त होती है दो अभिनव भारती इष्टिका को भरत के नाट्यशास्त्र पर अभिनव भारती नामक टीका प्राप्त होती है इष्टिका का दूसरा नाम नाक के वेद व्यक्ति भी दिया जाता है नाट्यशास्त्र पर प्राचीन काल में अनेक टीकाएं लिखी गई परंतु आज केवल यही टीका उपलब्ध है नाट्यशास्त्र के विषयों की जानकारी के लिए यह टीका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है इसमें प्राचीन भारत की नाते कला अभिनय संगीत आदि विषयों की जानकारी बहुत ही गहराई से दी हुई है देखा जाए तो अभिनव गुप्त द्वारा नाट्यशास्त्र पर लिखा गया यह एक स्वतंत्र और मौलिक रचना की भांति है परंतु दुर्भाग्य है कि यह टीका पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है 3:00 काव्य कौतुक विवरण इस ग्रंथ के रचनाकार अभिनवगुप्त के गुरु बांटते हैं अभिनवगुप्त ने इस पर विवरण नामक टीका लिखी है आज यह ग्रंथ और टीका दोनों उपलब्ध नहीं होते हैं अभिनव भारती तथा ध्वन्यालोक लोचन में कहीं-कहीं उसके उद्धरण प्राप्त होते हैं दो स्तोत्र आचार्य अभिनवगुप्त ने अनेक स्तोत्र ग्रंथों की रचना की इनमें कुछ तोते बड़े हैं तथा कुछ छोटे हैं भैरव स्तव कर्म स्तोत्र आदि वृहदाकार में है और बुध पंचाशिका आदि छोटे आकार के हैं उनके द्वारा रचित अन्य स्तोत्रों के नाम है देवी स्तोत्र विवरण शिव शक्ति बिना भाव स्तोत्र प्रकरण स्तोत्र इत्यादि 3 तंत्र आचार्य अभिनव गुप्त की कृतियों में एक भाग तंत्रों से संबंधित है इनका तंत्रालोक अत्यंत ही प्रसिद्ध ग्रंथ है मालनी विजय भारती परात ऋषि का विवरण तथा तंत्रालोक सार भी तंत्र ग्रंथ हैं चार प्रत्यभिज्ञा दर्शन आचार्य अभिनवगुप्त ने प्रत्यभिज्ञा दर्शन विवाद वित्त से संबंधित की भी रचना की इस दर्शन पर मूल रूप से कार्यक्रम और व्यक्ति की रचना उत्पल गुप्त ने किया था जोकि अभिनवगुप्त के दादागुरु थे अर्थात अभिनवगुप्त के गुरु लक्ष्मण गुप्त तथा उनके गुरु उत्पल गुप्त थे कार्य का ग्रंथ का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा और व्यक्ति का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा निवृत्ति है इस पर अभिनवगुप्त में विस्तृत टीका लिखी है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा विवर्त यूनिवर्सिटी के नाम से प्राप्त होती है अभिनवगुप्त ने प्रतिज्ञा दर्शन पर दो विमर्श में लिखी है इनमें से एक प्रत्यभिज्ञा विमर्श नी है जिसे लघु वृत्ति भी कहा जाता है तथा दूसरी गाड़ी का वृद्धि पर विमर्शनी प्राप्त होती है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा व्यक्ति विमर्श नी है है इस ग्रंथ के अंत में अभिनव गुप्ता ने लिखा है कि भगवान शिव के उस मार्ग को सरल और सार्वजनिक सुलभ बनाया है जिसे गुरुओं ने निरूपित किया जो इस मार्ग का अनुसरण करता है वह पूर्ण हो कर शिव रूप हो जाता है अभिनवगुप्त का वैशिष्ट्य अभिनवगुप्त के प्रकार पांडित्य को समझने के लिए हमें आचार्य मम्मट को समझना होगा आचार्य मम्मट इनके आचार्य थे जिसे सरस्वती का अवतार कहा जाता है इनकी लोचन टीका संस्कृत क्षेत्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है इन्हें दुनिया लोग के एक-एक आकार के रूप में ही नहीं अपितु ध्वनि संप्रदाय के संस्थापक एवं प्रवर्तक के रुप में देखा जाता है यह आनंदवर्धन के समकालीन थे आचार्य अभिनवगुप्त आलोचना शास्त्र के इतिहास में गौरव में स्थान रखते हैं इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलते हुए भारत में आलोचना विषयक चिंतन प्रादुर्भूत हुआ यह अभिनव गुप्त कश्मीर के सेव आचार्य में अनन्यतम थे तथा प्रत्यभिज्ञा दर्शन के मौलिक आचार्य होने के कारण परम महेश्वर आचार्य पदवी से विभूषित किए जाते हैं

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