सनातन धर्म
में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष १२ पूर्णिमाएं होती
हैं,
जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १३ हो जाती है। कार्तिक
पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को
त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इसी दिन भगवान शिवजी ने
त्रिपुरासुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। [एक मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म
तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है] इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस
समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूयाऔर क्षमा, इन
छ: कृतिकाओं का पूजन करने से भगवान शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन
गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
पुराणों के
अनुसार,
इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा
सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।
एक अन्य
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णुजी कार्तिक शुक्लैकादशी को जागरण के उपरांत
पूर्णिमा से किशेष क्रियाशील होते हैं, जिसके
उपलक्ष में देवता दिवाली मनाते हैं, इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा
को देवदिवाली भी कहा जाता है।
महाभारत के
अनुसार,
महाभारत काल में हुए १८ दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और
सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्रीकृष्ण पांडवों
सहित गढ़खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने
स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में
दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस
दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने
का विशेष महत्व है।
एक मान्यता
यह भी है कि इस दिन, पूरे दिन व्रत रखकर
रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति
इस दिन उपवास करके भगवान शिवजी का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ
का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही
वैष्णव मत में भी।
वैष्णव मत
में भी कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी
भी कहा गया है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़
जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस
दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका
नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है,
जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति
होती है।
महत्व :
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान,
हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का
शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान
का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ
मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए
स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे
पुनःप्राप्त होता है।
शास्त्रों
में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में
जैसे,
पुष्कर, गंगा, यमुना,
गोदावरी, नर्मदा, गंडक,
कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी
में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
स्नान और
दान विधि : ऋषि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और
दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल
की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते
समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें,
इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और
जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।
अतिविशिष्टदान
: इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर
का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत
की मछली छोड़कर किया जाता है।
गुरुनानक
जयंती : सिक्ख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में
मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय
के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था। इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के अनुयायी
गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक देवजी के अनुसरण का संकल्प करते
हैं, इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
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