सूर्य-चन्द्र-गुरु
जब एक राशि में आते हैं तो महा-कुम्भ योग होता है। स्वामी करपात्री जी द्वारा
कुम्भपर्व निर्णय ग्रन्थ के पृष्ठ-२२ पर
देवों के १२ दिनों अर्थात् मनुष्य के १२ वर्षों में १२ कुम्भ पर्व भारत के १२
स्थानों में होते हैं-
देवश्चागत्य
मज्जन्ति तत्र मासं वसन्ति च। तस्मिन् स्नानेन दानेन पुण्यमक्षय्यमाप्नुयात्॥
सिंहे युतौ
च रेवायां मिथुने पुरुषोत्तमे। मीनभे ब्रह्मपुत्रे च तव क्षेत्रे वरानने॥
धनुराशिस्थिते
भानौ गङ्गासागरसङ्गमे। कुम्भराशौ तु कावेर्य्यां तुलार्के शाल्मलीवने॥
वृश्चिके
ब्रह्मसरसि कर्कटे कृष्णशासने। कन्यायां दक्षिणे सिन्धौ यत्राहं रामपूजितः॥
अथाप्यन्योऽपि
योगोऽस्ति यत्र स्नानं सुधोपमम्। मेषे गुरौ तथा देवि मकरस्थे दिवाकरे॥
त्रिवेण्यां
जायते योगः सद्योऽमृतफलं लभेत्। क्षिप्रायां मेषगे सूर्ये सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥
मासं
यावन्नरः स्थित्वाऽमृतत्वं यान्ति दुर्लभम्। (रुद्रयामल,
तृतीय करण प्रयोग, १२२-१२८)
अर्थात्-१.
सूर्य-चन्द्र-गुरु सिंह राशि में युत होने से नासिक (महाराष्ट्र) में,
२. मिथुन
राशि में जगन्नाथपुरी (ओड़िशा) में,
३. मीन
राशि में कामाख्या (असम) में,
४. धनु
राशि में गङासागर (बंगाल) में,
५.
कुम्भराशि में कुम्भकोणम् (तमिलनाडु) में,
६. तुला
राशि में शाल्मली वन अर्थात् सिमरिया धाम (बिहार) में,
७. वृश्चिक
राशि में कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में,
८. कर्क
राशि में द्वारका (गुजरात) में,
९. कन्या
राशि में रामेश्वरम् (तमिलनाडु) में,
१०.
मेषाऽर्क-कुम्भ राशि गत गुरु में हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में,
११.
मकराऽर्क मेषराशिगत गुरु में प्रयाग (उत्तर प्रदेश) में,
१२.
मेषाऽर्क सिंहस्थ गुरु में उज्जैन (मध्य प्रदेश) में
महाकुम्भ
होता है।
टिप्पणी-१.
कुरुक्षेत्र में महाभारत कार्तिक अमावास्या (अमान्त मास,
उसके बाद मार्गशीर्ष का आरम्भ) को आरम्भ हुआ जिस समय सूर्य वृश्चिक
राशि में थे। चन्द्र का प्रायः उसी समय वृश्चिक राशि में प्रवेश होता है। दक्षिणी
गणना से षुभकृत सम्वत्सर था। इसमें गुरु वृश्चिक राशि में नहीं था।
२.
रामेश्वरम् में बगवान् राम ने फाल्गुन मास में शिव की पूजा की थी। उस समय गुरु
कन्या राशि में थे। राम जन्म के समय् गुरु कर्क राशि में थे। ३६ वर्ष बाद पुनः
कर्क राशि में; ३९ वर्ष बाद राज्याभिषेक (२५
वर्ष में वनवास, १४ वर्ष तक) के समय तुला में प्रवेश किये।
उससे पूर्व कन्या राशि में थे।
३. कुम्भ
का सामान्य अर्थ जल का पात्र है। कुम्भ जैसा प्रयोग होने वाला कुम्भड़ा है
(कूष्माण्ड का अपभ्रंश)। जल के क्षेत्र भी कुम्भ स्थान हैं। कावेरी नदी का डेल्टा
भी कुम्भ है। उसका कोण कुम्भकोणम् है। यह अगस्त्य का जन्म स्थान था। इसी कुम्भ से
उनका जन्म हुआ, मिट्टी के बर्तन से नहीं। आकाश
में क्षितिज के ऊपर का दृश्य भाग कुम्भ है (वेद में चमस भी कहा है)। उत्तर से
दक्षिण की रेखा उसे २ भाग में विभाजित करती है। उत्तरी विन्दु वसिष्ठ तथा दक्षिणी
विन्दु अगस्त्य है। एक अगस्त्य तारा भी है जिसके दक्षिणी अक्षांश पर अगस्त्य द्वीप
था। यह करगुइली द्वीप कहलाता है जो अभी फ्रांस के अधिकार में है। आकाश के कुम्भ का
पूर्व भाग या पूर्व कपाल मित्र तथा पश्चिम कपाल वरुण है।
४. पुरी
में जब भी रथ यात्रा होती है, सूर्य और
चन्द्र मिथुन राशि में ही होते हैं (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया)। रथयात्रा या दशमी को
विपरीत रथ यात्रा, इन दोनों में कम से कम एक के समय सूर्य
पुनर्वसु नक्षत्र में होता है। अदिति के समय इसी नक्षत्र में पुराना वर्ष समाप्त
होकर नया वर्ष शुरु होता था। अतः शान्ति पाठ में कहते हैं-अदितिर्जातं
अदितिर्जनित्वम्। १७,५०० ई.पू. में पुनर्वसु में विषुव
संक्रान्ति होती थी। अतः अदिति को पुनर्वसु का देवता कहा गया है। गुरु मिथुन राशि
में १२ वर्ष के बाद ही आ सकता है। पर उसके अनुसार नव-कलेवर नहीं होता। यह प्रायः
१९ वर्ष बाद होता है जब अधिक आषाढ़ मास हो।
५. शाल्मली
वन सिमरिया घाट के अतिरिक्त अन्य भी हो सकते हैं। यह गङ्गा और कोशी के संगम पर था।
प्राचीन काशी राज्य में भी गङ्गा-शोण सङ्गम के पास सेमरा गांव है। यह काशी क्षेत्र
का कुम्भ क्षेत्र हो सकता है।
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