योग दर्शन
में चित्र से मन बुद्धि और अहंकार को लिया गया है चित्र त्रिकोणात्मक होने के कारण
परिणामी है सत्व रज और तम इन तीनों गुणों की उद्रेक के अनुसार चित्त की निम्नलिखित
तीन अवस्थाएं होती है प्रज्ञा शील प्रगतिशील स्थिति शील प्रथम अवस्था का चित्र
सत्व प्रधान होता हुआ रज और तम से संयुक्त हो करणी माता दी ऐश्वर्य का प्रेमी होता
है ज्योति अवस्था में तमोगुण से युक्त चित्र धर्म का ज्ञान और वैराग्य तथा अन
ईश्वरी से संयुक्त होता है कृषि व्यवस्था में इंफेक्शन होने पर रजत के अंश से
युक्त होने पर चित्र सर्वत्र प्रकाशमान होता है तथा धर्म ज्ञान वैराग्य और ऐश्वर्य
से प्राप्त होता है योग दर्शन में चित्त की पांच भूमियां अथवा अवस्थाएं स्वीकार की
गई है यह भूमियां है क्षेत्र मूड विक्षिप्त एकाग्रता अनिरुद्ध इन 5 अवस्थाओं का स्वरूप निर्धारण किस प्रकार किया जाता है क्षेत्र क्षेत्र का
साधारण आर्थ चंचल है क्षेत्र अवस्था में चित्र चंचल होकर संसार के सुख दुख आदि के
लिए प्रतीत रहता है इस अवस्था में रजोगुण का प्राधान्य रहता है मूड चित्र की मुठ
अवस्था में दमोह तमोगुण का उद्रेक होता है इस दिशा में इस दशा में चित्र में विवेक
सुनीता रहती है अतः मूड अवस्था में विवेक न होने के कारण पुरुष क्रोध इत्यादि के
द्वारा गलत कार्यों में प्रवृत्त होता है विचित्र विक्षिप्त इक की स्थिति क्षेत्र
से विशिष्ट है शिफ्ट की अपेक्षा विक्षिप्त की यह विशेषता है जिस क्षेत्र में तो
रजोगुण तक की प्रधानता रहती है परंतु विक्षिप्त अवस्था में रजोगुण की अपेक्षा
सतोगुण का उद्रेक रहता है सतोगुण के की अधिकता के कारण विक्षिप्त अवस्था का चित्र
कभी-कभी स्थिरता धारण कर लेता है इस अवस्था में दुख साधनों की और प्रवृत्तियों
होकर सुख के साधनों की और प्रवृति रहती है वह तीनों अवस्थाएं समाधि के लिए
अनुपयोगी होने के कारण है यह है चौथा एक आगरा एकाग्र अवस्था वह अवस्था है जिसमें
चित्र की बाह्य भर्तियों का निरोध हो जाता है अनिरुद्ध पंचमी निरूद्ध अवस्था है अनिरुद्ध
अवस्था में चित्र के समस्त संस्कारों तथा समस्त व्यक्तियों का विलय हो जाता है इन 5 भूमियों में से अंतिम दो भूमियां ऐसी हैं जिनकी समाधि के लिए अपेक्षा है
योगसूत्र
पतंजलि योग
सूत्र में योग के आठ साधनों की चर्चा की गई है यह साधन है यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार
धारणा ध्यान तथा समाधि यह आठ साधन योग के अंग भी कहलाते हैं उनका संक्षिप्त विवरण
इस प्रकार है यम यम का अर्थ स नियम है सत्य अहिंसा चोरी नहीं करना ब्रह्मचर्य
दूसरी की वस्तुएं नहीं लेना अपरिग्रही 5:00 PM कहे जाते हैं नियम नियम के भी पांच भेद होते हैं शौच संतोष स्वाध्याय तथा
ईश्वर प्रणिधान आसन योग दर्शन में स्थिर और सुख प्रदान करने वाले बैठने के प्रकार
को आसन करते हैं उपासना में आसन सिद्धि की अत्यंत उपादेयता है आसना सिद्धि चित्त
की एकाग्रता एवं अत्यंत सहायक होती है हठयोग प्रदीपिका में भी आसनों के विस्तृत
विवरण प्राप्त होते हैं प्राणायाम स्वास्थ्य और प्रश्वास की गति विच्छेद का नाम
प्रणायाम है बाहर की भाइयों का आगमन स्वास्थ्य तथा भीतरी भाइयों का को बाहर करना
प्रश्वास कहलाता है पतंजलि के योग सूत्र के अंतर्गत वाहे आभ्यंतर स्तंभ वृद्धि तथा
चतुर्थ प्राणायाम या केवल कुंभक प्राणायाम यह चार भेद बताए गए हैं प्रत्याहार चित
निरोध के समान है जब वाही विषयों से इंद्रियों का निरोध हो जाता है तो उसे
प्रत्याहार कहते हैं स्थिति में इंद्रियों की वृति अंतर्मुखी हो जाती है घटना किसी
स्थान विशेष में चित्र को लगा देना धारणा कहलाता है स्थान विशेष से तात्पर्य नाभि
चक्र हृदय कमल मुर्दा वर्तनी ज्योति नासिका के आगे का भाग तथा जिहवा के आगे भाग
आदि से है ध्यान उपर्युक्त स्थान विशेष में देर वस्तु का ज्ञान जब एकाकार होकर
प्रवाहित होता है तो उसे ध्यान करते हैं ध्यानावस्था में एकाकार रूप ज्ञान से
बलवान और कोई ज्ञान नहीं होता समाधि जब ध्यान वस्तु का आकार ग्रहण कर लेता है और
अपने स्वरूप से सुनीता को प्राप्त हो जाता है तो उसे समाधि कहते हैं समाधि में
ध्यान और यात्रा का भेद मिट जाता है इसके विपरीत ध्यान में ध्यान ध्याता और देख
अवैध बना रहता है
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