खगोल
विज्ञान वह शास्त्र है, जिसमें ब्रह्माण्ड में स्थित
विभिन्न पिण्डों के बारे में अध्ययन किया जाता है। मनुष्य ने जब अन्तरिक्ष में
सूर्य, चन्द्र,
तारों को देखा तभी
उसमें इसके विषय में अधिक जानने की उत्सुकता पैदा हुई। प्रागैतिहासिक काल में ही
हमारे पूर्वजों ने सूर्य, चन्द्र व अन्य खगोलीय पिण्डों को
ध्यान से देखा तथा तारों को नक्षत्रों एवं राशियों में समूहबद्ध कर लिया था। हाल
में ही कुछ वर्ष पूर्व नासा के एक दूर संवेदी उपग्रह द्वारा, भारत
और श्रीलंका के मध्य लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व की शिलाओं से बने पुल के अंश दिखाई
पड़ने की पुष्टि की गई। ऐसे में त्रेतायुग के श्रीराम और द्वापर के कृष्ण के
अस्तित्व, जिसे पश्चिम और तथाकथित तर्कवादी
विचारधारा के विद्वानों ने नकार दिया था,
पर एक व्यापक बहस
भारतीय राजनीति में देखने को मिली। राजनीतिक रूप से तो श्रीराम के अस्तित्व की परख
कर पाना लगभग नामुमकिन है, लेकिन खगोलीय स्थितियों के आधार पर
बड़ी आसानी से रामायण और महाभारत कालखंड को स्पष्ट किया जा सकता है। महर्षि
वाल्मीकि द्वारा कुछ श्लोकों में नभ मंडल के विन्यास को सरलता से स्पष्ट करना, उनके
महान खगोल ज्ञान को दर्शाता है। जिस सहजता से उन्होंने इसका स्पष्टीकरण दिया है, उससे
प्रतीत होता है कि उनके समकालीन समाज में खगोल और विज्ञान का प्रचलन आम था। ग्रहों, नक्षत्रों
और अंतरिक्षीय परिघटनाओं के निर्दोष वैज्ञानिक विश्लेषण से इतना तो साफ है कि
प्रभु श्रीराम भारतवर्ष में लगभग 7000 वर्ष पूर्व विद्दमान थे। १). श्री राम का
जन्मः-रामायण के बाल-काण्ड के १९वें सर्ग तथा ८वें और ९वें श्लोक में स्पष्ट रूप
से कहा है कि श्री राम का जन्म चैत्र मास की नवम तिथि में हुआ था जिस में
राशि-चक्र और नक्षत्र मण्डल की स्थिति ऐसी थी कि सूर्य मेष घर में, शनि
तुला में, बृहस्पति कर्क में, शुक्र
शनि में, मंगल ग्रह मकर में थे।चैत्र मास के
शुक्ल पक्ष के नवम दिवस तथा कर्क लग्न में जब कर्क पूर्व में उदय हो रहा था, चन्द्रमा
पुनर्वासु (पोलक्स स्टार) पर और दिन में लगभग दोपहर का समय था। ये आंकड़े ‘प्लैनिटेरियम’ में
कम्प्यूटर द्वारा भर दिये गए। कम्प्यूटर के परिणामों ने चकित कर दिया। राशि, नक्षत्र, ग्रहों
तथा तारा-मण्डल की स्थिति से सिद्ध हुआ कि श्री राम का जन्म १० जनवरी, ५११४
(10 January, 5114) ईसवी पूर्व जो भारतीय पञ्चांग
के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दोपहर के १२ (12)बजे और १ (1) बजे
के मध्य का समय निकलता है। इस प्रकार श्री राम का जन्म लगभग ७१२० (7120) वर्ष
पूर्व हुआ था।श्री राम अनुज लक्षमण को ले कर १३वें (13th) वर्ष
में ऋषि विश्वमित्र के साथ तपोवन में गये थे। वहां से राजा जनक की राजधानी मिथिला
में प्रवेश किया जहां राजकुमारी सीता के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ। वाल्मीकि ने
इस यात्रा-मार्ग में २३ (23) स्थानों का उल्लेख किया है जिन में शृंगी आश्रम, राम
घाट, ताड़का वन,
सिद्धाश्रम, गौतमाश्रम, जनक
पुर, सीता कुण्ड आदि सम्मलित हैं जहां आज भी उनके
स्मारक-चिन्ह मिलते हैं। यह याद रहे कि स्थानों का नामकरण उन घटनाओं के पश्चात ही
किया जाता है। २). राम-बनवासः-अयोध्या काण्ड २।४।१८ (2/4/18) में स्पष्ट है कि
राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का समय विद्वान पण्डितों तथा गुरु वसिष्ठ के
निर्देशानुसार निश्चित किया था जिस समय सूर्य,
चन्द्रमा और राहू
राजा के रेवती नक्षत्र को इस प्रकार घेरे हुए थे जिस स्थिति में वे मृत्यु को
प्राप्त होते हैं या षड़यन्त्र के शिकार होते हैं।राजा दशरथ की राशि मीन थी और
नक्षत्र रेवती था। यही वह क्षण थे जब षड़यन्त्र द्वारा श्री राम को अयोध्या छोड़
कर १४ वर्ष का बनवास मिला। रामायण के अनुसार उस समय श्री राम की आयु २५ वर्ष थी।
प्लैनिटेरियम सॉफ्टवेयर द्वारा इन आंकड़ों से सिद्ध होता है उस दिवस की तिथि ५
जनवरी ५०८९ ईसवी पूर्व (5 January 50890 ईसवी पूर्व तक २५ वर्ष ५
दिन(25 yrs. 5
days) बनते हैं जो
वाल्मीकि के कथन की भी पुष्टि करती है। ३). खरदूषण से युद्धः-श्री राम के
वनवास-काल के १३वें वर्ष के मध्य खरदूषण से उनका युद्ध हुआ था। उस समय रामायण में
सूर्य-ग्रहण का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि यह भी लिखते हैं कि वह अमावस्य का दिन
था तथा मंगल मध्य में था। एक ओर शुक्र एवं बुद्ध और दूसरी ओर सूर्य एवं शनि थे।
कम्प्यूटर में यह आधार-सामग्री डालने पर परिणाम-स्वरूप ७ अक्तूबर, ५०७७
ई.पूर्व (7 October, 5077 ईसवी पूर्व) की तिथि प्राप्त
हुई। साथ ही सूर्य ग्रहण और अमावस्या की स्थिति भी स्पष्ट थी। इतना ही नहीं बल्कि
सूर्य-ग्रहण की दिशा भी मिलती है कि उस समय सूर्य ग्रहण पञ्चवटी से देखा जा सकता
था। ४). रावण का वधः- रामायण में रावण के वध के समय नक्षत्रों की स्थिति वर्णन की
गई है। इस आधार पर ‘प्लैनिटेरियम’ के
अनुसार रावण की मृत्यु ४ दिसम्बर, ५०७६ (4 December, 5076) ईसवी पूर्व को हुई थी। ५). वन-वास की
समाप्तिः-वन-वास की १४ (14) वर्षीय अवधि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर
समाप्त होती है जो कम्प्यूटर के अनुसार २ जनवरी,
५०७५(2nd January, 5075) ईस्वी पूर्व थी। इस प्रकार अयोध्या लौटने
के समय श्री राम की आयु ३९ वर्ष (39
years) की थी। इन सभी
घटनाओं को अंक-गणित द्वारा परखें तो हर प्रकार से ताल-मेल ठीक बैठता है।‘प्लैनिटेरियम’ के
अतिरिक्त और भी बातें हैं जो रामायण की अन्य घटनाओं और स्थान आदि पर भी दृष्टि
डालना असंगत नहीं होगा। वाल्मीकि कृत आदि रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि दशरथ
ने अपने कुल पुरोहित वशिष्ठजी से कहा कि राम का राज्याभिषेक शीघ्र करवा दिया जाए
क्योंकि आपके अनुसार उनकी राहु की दशा का आरंभ होेने वाला है। तब गुरू वशिष्ठ ने
अभिषेक के लिए पुष्य नक्षत्र का शुभ मुहूर्त निकाला क्योंकि भगवान श्रीराम का जन्म
नक्षत्र पुनर्वसु था, इसलिए पुनर्वसु से द्वितीय नक्षत्र
होने के कारण पुष्य को शुभ नक्षत्र माना गया। इसी प्रकार जब महाराज दशरथ के
ज्योतिर्विदों ने उन्हें अवगत कराया कि
खगोलविज्ञानं
वेदस्य नेत्रमुक्तम् महर्षिणा। सृष्टेः व्यवहारस्य निर्धारणं कालेनैव भवति। कालस्य
ज्ञानं च ग्रहगति द्वारा निश्चीयते। अत: प्राचीनकालतः अद्यपर्यन्तं खगोलविज्ञानं
वेदांगस्यावयवत्वेन परिगण्यते। यजुर्वेदेपि आयं गोः पृश्निर क्रमीदसवन्मातारं पुर:
। इति मन्त्रे स्पष्टतया सूर्यं परितः पृथ्वियाः भ्रमणं सिद्धयति। खगोलविज्ञाने
ब्रह्माण्डे स्थितानां विभिन्नपिण्डानां अध्ययनं क्रियते। प्रागैतिहासिककालादारभ्य
अस्माकं पूर्वजाः सूर्यं, चन्द्रं अन्यखगोलीय पिण्डान्
दृष्टवन्तः। राजनैतिकरूपेण तु श्रीरामस्य अस्तित्वनिर्धारणं नैव सम्भवम् , परन्तु
वाल्मीकिरामायणे यत् खगोलीयं वर्णनं प्रप्यते तदाधारेण सर्वं स्पष्टतया ज्ञातुं
शक्यते। महर्षि- वाल्मीकिना रचिते श्लोके नभमंडलस्य विन्यासं सरलं स्पष्टं च
अस्ति। अनेनैव एतदपि ज्ञायते यत् समकालीने समाजे खगोलविज्ञानं उन्नततमं आसीत्।
अस्योदाहरणं पश्यन्तु विज्ञाः। १). श्रीराम का जन्मः- रामायणस्य बाल-काण्डेः
उनविंशतितमे सर्गस्य , अष्टमे नवमे च श्लोके स्पष्टरूपेण
लिखितमस्ति यत् श्रीरामस्य जन्म चैत्र मासस्य नवम्यां तिथौ अभवत्। यस्मिन् सूर्यः
मेषस्य गृहे , शनिः तुलायां , बृहस्पतिः
कर्के , शुक्रः शनौ , स्थाने
आसीत् ।
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