आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम
से जाना जाता है उसी दिन से कार्तिक के नियमों का प्रारंभ हो जाता है इसी दिन
कोजगरा का त्यौहार भी धूमधाम से मनाया जाता है चंद्रमा की रोशनी में 108 बार सुई
में धागा पिरोने से आंख की ज्योति बढ़ती है । सिडको रात भर उस में रखते हैं तथा
इसका प्रसाद का तत्काल सबको दिया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन रात्रि में
चंद्रमा अमृत की वर्षा करते हैं कोजगरा के अवसर पर प्रदोष में लक्ष्मी के पूजन का
विधान है इस दिन सभी घरों और आवास के समय मार्गों को साफ-सुथरा करना चाहिए शरीर
मैं चंदन आदि का लेप लगाकर शरीर को सुगंधित करना चाहिए स्त्रियों बालकों वृद्धों तथा
मूर्खों को छोड़कर और लोगों को दिन में भोजन नहीं करना चाहिए प्रदोष के समय द्वार
के ऊपर भित्ति पर भव्य वाहन पूर्णेंदु भाइयों के साथ रूद्र स्कंद नंदीश्वर मुनि
सूरज सूरभी निकुंभ लक्ष्मी इंद्र तथा कुबेर की पूजा करनी चाहिए जिनके पास भैरव व
वरुण की पूजा करें जिनके पास हाथी हो वह विनायक की पूजा करें जिनके पास घोड़े हो
वह दयमंती की अरे मंत्र की पूजा करें जिनके पास गाय हो सुरभि की पूजा करें पूजा की
विधि इस प्रकार है दैनिक क्रिया संपन्न कर व्रत किया हुआ व्यक्ति स्वच्छ आसन पर
बैठकर गणपति आदि देवता सहित विष्णु की पूजा कर संकल्प करें द्वार को जल से
अभिसिंचित कर गंध अक्षत से द्वारा भित्ति पता है नमः कसकर वास्तु की पूजा करें इस
प्रकार पूजा विधि संपन्न कर लक्ष्मी की पूजा करें पूजा समाप्त होने के उपरांत
प्रसाद ग्रहण कर भोजन करें तथा बंधुओं के साथ भोजन करें इसी दिन ऑफलाइन शाखा वाली
रोहा सी यूज़ कर्म करते हैं पूर्णिमा की रात्रि में आकषक लीगा अक्षय क्रिडा या
परसों का से खेल खेला जाता है स्कंद पुराण के अनुसार कोजगरा व्रत को सर्वश्रेष्ठ
व्रत माना गया है आश्विन मास की पूर्णिमा को कौमुदी यह कहा जाता है
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